राज़ नवादवी
धीरे धीरे ही सही, गाँव नगर बनता है
जिस जगह खेत था, खलिहान था, घर बनता है //१
लोग मर जाते हैं भूखे ही, ख़बर है किसको
जब कि इक रोटी चुराना भी ख़बर बनता है //२
हौसला देखना है सामने जब बिल्ली हो
वरना पीछे में तो चूहा भी निडर बनता है //३
आजकल वो ही सफल होता है सच पूछो तो
जिसको कुछ भी नहीं आता है मगर बनता है //४
हम तो जन्नत की ख़बर रखते हैं हमसे पूछो
इश्क़ में आदमी मरकर भी अमर बनता है //५
ईंट पत्थर से मकाँ हम भी बना लें पर 'राज़'
रहने वालों की मुहब्बत से ही घर बनता है//६
राज़_नवादवी
(एक अंजान शाइर)
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