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सोमवार, 30 मार्च 2020

जिन के पंखों में हौसला ही नही

असीम आमगांवी‎
जिन के पंखों में हौसला ही नही ।
उन परिंदों का फिर ख़ुदा ही नही ।।

चल चुका हूँ तमाम उम्र मगर,
मंज़िलों का कोई पता ही नही ।

शहर का ये मिज़ाज़ तो देखो,
हमसे कोई गले मिला ही नही ।

डूबा रहता है हर पल आंखों में,
पर वो भीगा हुआ दिखा ही नही ।

ज़ख्म लफ्जों के हो या हो कोई,
ऐसे ज़ख्मों की क्या दवा ही नही ।

बेमआनी हिज़ाब और परदे,
जब कि आँखों में कुछ हया ही नही ।

क्या सज़ा सिर्फ उनको मिलती है,
जिनकी कोई यहाँ ख़ता ही नही ।

जिस खुदा को मैं जानता हूँ यहाँ,
उस ख़ुदा का कहीं पता ही नही ।

- असीम आमगांवी, आमगांव

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