असीम आमगांवी
जिन के पंखों में हौसला ही नही ।
उन परिंदों का फिर ख़ुदा ही नही ।।
उन परिंदों का फिर ख़ुदा ही नही ।।
चल चुका हूँ तमाम उम्र मगर,
मंज़िलों का कोई पता ही नही ।
शहर का ये मिज़ाज़ तो देखो,
हमसे कोई गले मिला ही नही ।
डूबा रहता है हर पल आंखों में,
पर वो भीगा हुआ दिखा ही नही ।
ज़ख्म लफ्जों के हो या हो कोई,
ऐसे ज़ख्मों की क्या दवा ही नही ।
बेमआनी हिज़ाब और परदे,
जब कि आँखों में कुछ हया ही नही ।
क्या सज़ा सिर्फ उनको मिलती है,
जिनकी कोई यहाँ ख़ता ही नही ।
जिस खुदा को मैं जानता हूँ यहाँ,
उस ख़ुदा का कहीं पता ही नही ।
- असीम आमगांवी, आमगांव
मंज़िलों का कोई पता ही नही ।
शहर का ये मिज़ाज़ तो देखो,
हमसे कोई गले मिला ही नही ।
डूबा रहता है हर पल आंखों में,
पर वो भीगा हुआ दिखा ही नही ।
ज़ख्म लफ्जों के हो या हो कोई,
ऐसे ज़ख्मों की क्या दवा ही नही ।
बेमआनी हिज़ाब और परदे,
जब कि आँखों में कुछ हया ही नही ।
क्या सज़ा सिर्फ उनको मिलती है,
जिनकी कोई यहाँ ख़ता ही नही ।
जिस खुदा को मैं जानता हूँ यहाँ,
उस ख़ुदा का कहीं पता ही नही ।
- असीम आमगांवी, आमगांव
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