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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

लघुकथाएं : प्रदीप शर्मा

1. 
माफी
"देखिए बहिन जी, हम मानते हैं कि उन बलात्कारियों ने आपकी 
बेटी के साथ बहुत ही गंदा काम किया। गैंगरेप के बाद उसकी नृशंस हत्या एक अक्षम्य अपराध है, परंतु मृत्युदंड ही इसका समाधान तो नहीं है न। आप भी एक माँ हैं। असमय अपनी संतान को खोने का दर्द आप भलीभांति समझती हैं। इन्हें मृत्युदंड दिए जाने पर इनकी माँओं पर क्या बीतेगी, जरा सोचिए। हमारा मानना है कि आपको इन्हें माफ कर देना चाहिए।"
"जरा आप इन बलात्कारियों की माँओं से भी पूछिए कि इनकी कारस्तानी से उन्हें कैसा महसूस हो रहा है ? हाँ, मैं एक माँ हूँ। इसीलिए मैं अपनी बेटी के बलात्कारी, हत्यारों को माफ नहीं कर सकती, क्योंकि आज यदि मैं इन्हें माफ करने की पैरवी करूँ, तो इनके जैसे लाखों बलात्कारी, हत्यारे और पैदा होंगे। मुझे उन अनगिनत माँओं की भी चिंता है जिनकी बच्चियाँ कभी भी मेरी बेटी की भाँति किसी अनहोनी की शिकार हो सकती हैं।"
***   ***
2.
शार्टकट
उनका लेखन बहुत अच्छा तो नहीं, पर ठीक-ठाक ही था। अक्सर स्थानीय अखबारों की रविवारीय अंक में उनकी रचनाएँ दिख जाती थीं। कभी-कभार राष्ट्रीय स्तर की अखबारों और संकलनों में भी। गद्य और पद्य की लगभग सभी विधाओं में उन्होंने कलम चलाया। 
बचपन से ही निरंतर लिखते हुए पचपन तक पहुँचने पर उन्हें लगा कि वे जिस स्तर की रचनाकार हैं, उनकी ख्याति उस स्तर की नहीं है। 
काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखना शुरु किया। इसमें उन्होंने अपने एक समकालीन प्रख्यात साहित्यकार और संपादक जो अब यह दुनिया छोड़ चुके थे, पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा दिया। 
आत्मकथा का वह अंश सोसल मीडिया में वायरल होने के बाद वे कुछ ही दिनों बहुचर्चित रचनाकार हो गई थीं। प्रकाशक, जो कभी उनसे सीधे मुँह बात तक नहीं करते थे, अब उन्हें छापने को आतुर थे।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
एचआईजी - 408, ब्लॉक - डी
कंचन अश्व परिसर, डंगनिया
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय
रायपुर, छत्तीसगढ़ 492010
9827914888
9109131207

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