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रविवार, 5 मार्च 2023

कभी कभी सोचता हूं

 डॉ. संजीत कुमार
 
कभी—कभी सोचता हूं तुम्हे
प्यार करू एक पिता की तरह'' 
तुम्हारी राहो से सारे कांटे
पलको से बीन हटाऊं ।

कभी सोचता हूं , तुम्हे प्यार करू
एक भाई की तरह
तुम्हारी मुश्किलों के सामने
चट्टान बन जाऊं ।

कभी मन करता है
बनकर मां पुचकार तुम्हे
सारी बलाएं तुम्हारी ले जाऊं।

कभी लगता है
छुप जाउ तुम्हारे अंक में
बेटे की तरह
और किसी को नजर नहीं आऊं।

ऐ जिन्दगी तू ये बता
तेरा क्या करू, तुझे कहां ले जाऊं।
 
दिल्‍ली

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