वाढेकर रामेश्वर महादेव
सुबह-सुबह मैं घूमने निकला,वातावरण का आनंद लेने। रास्ते के बगल में
बड़ा पेड़ था, उसके नीचे कोई बैठा था। उसके रोने की आवाज आ रही
थी। नजदीक जाकर देखा, तो वह मित्र कैलाश था। उसे समझाते हुए मैंने
कहा-"कैलाश,खुद को संभाल,अब परिवार की जिम्मेदारी तुम पर है।"
"अब अन्ना मेरे साथ नहीं है, मैं जीकर क्या करू? बालू, मुझे नहीं जीना।"
"तुझे जीना पड़ेगा,माॅं,भाई,बहन के लिए।"
"पिताजी का निधन,यह सदमा मैं भूल ही नहीं सकता।"कैलाश ने कहा।
जितना
दुख तुझे है,शायद उससे ज्यादा तुम्हारी माॅं सावित्री को होगा। किंतु वह
दुख भी व्यक्त नहीं कर सकती। क्योंकि वह सुन सकती है, बोल नहीं सकती।
उसके दुख को तुझे समझना है। माॅं का सहारा बनना है।
हां, मैं अब माॅं के लिए जीऊंगा। उसे अकेलापन कभी महसूस नहीं होने दूंगा। उसके साथ समय बिताऊंगा।
"कैलाश,एक बात पूछनी थी।"
"पूछ, बालू।"
अन्ना
का निधन हुआ,यह मुझे मालूम है। किंतु समाज में निधन के कई कारण बताए
जा रहे हैं। सही कारण मुझे भी पता नहीं । वह मुझे जानना है।
बालू भैया, मैं तुम्हें बड़ा भाई समझता हूॅं। जो हुआ वह सच बताऊंगा। अन्ना
का निधन शराब से हुआ । इतना ही नहीं तो अन्ना जुगार भी खेलते थे। माॅं
को मारते थे, गालियां देते थे। मैं देखकर, सुनकर अनदेखा करता था। समाज के
कारण।
कैलाश,तुम्हारी माॅं सावित्री पहले से दुख सहती आई है शायद।
बालू,अन्ना ने मुझे कई बार कहा था कि शादी मैंने सिर्फ जायदाद के लिए की थी।
मतलब, मैं नहीं समझा।
दहेज में अन्ना को दो एकड़ जमीन मिलने वाली थी।
मिली क्या कैलाश?
नहीं मिली। माॅं के पिताजी का देहांत हुआ,तो माॅं के भाई ने नहीं दी। इन कारणवश भी माॅं को अन्ना बहुत पीटते थे।
यानि
सावित्री काकी के साथ सिर्फ व्यवहार हुआ। कैलाश, मैं आप से विनती
करता हूं कि तू माॅं को कभी दुख मत दो। क्योंकि वह सिर्फ वेदना ही सहती
आई है।
कभी नहीं दूंगा दुख। मैं मरते दम तक उसके साथ रहूंगा,बालू।
अब आगे क्या करने का सोचा है कैलाश? परिवार का गुजारा किस तरह करेगा।
मैं बकरियां संभालूंगा। मुझे छोटे भाई माणिक को पढ़ाना है और बहन की शादी भी।
हो जाएगा, ज्यादा सोच मत । कुछ जरूरत पढ़ी तो मुझे कभी भी बताना, मैं तुम्हारे साथ हूं
और निरंतर रहूंगा। कैलाश बहुत बातचीत हुई, अब मैं चलता हूं। मुझे वापिस शहर जाना है।इस बार सावित्री काकी से नहीं मिला। अगली बार उनसे जी भर के बात करूंगा। काकी को बता देना बालू ने याद किया था। जल्द मिलेंगे। दूसरी बार।
मैं बकरियां संभालूंगा। मुझे छोटे भाई माणिक को पढ़ाना है और बहन की शादी भी।
हो जाएगा, ज्यादा सोच मत । कुछ जरूरत पढ़ी तो मुझे कभी भी बताना, मैं तुम्हारे साथ हूं
और निरंतर रहूंगा। कैलाश बहुत बातचीत हुई, अब मैं चलता हूं। मुझे वापिस शहर जाना है।इस बार सावित्री काकी से नहीं मिला। अगली बार उनसे जी भर के बात करूंगा। काकी को बता देना बालू ने याद किया था। जल्द मिलेंगे। दूसरी बार।
देखते- देखते उच्च शिक्षा पुरी हुई। दुनिया दारी समझ आने
लगी। ज़िंदगी में माॅं,बाप का क्या महत्व है, यह गाॅंव छोड़ने के बाद
समझ आया। माॅं की याद आ रही थी। माॅं को मिले बहुत दिन हुए थे। फोन पर हर
दिन बात होती थी लेकिन माॅं को देखने का मन हुआ। मैं रात को ही गाॅंव
के तरफ निकल गया।
सुबह-सुबह कैलाश का भाई माणिक रास्ते से जाते हुए दिखाई दिया, मैंने घर से ही जोर से आवाज दी-"माणिक! माणिक...।"
उसने पीछे मुड़कर देखा और कहा- "बालू भैया
आप कब आए शहर से।"
"आज ही आया हूॅं। परिवार में सब ठीक ठाक है न।"
"परिवार ही नहीं रहा।"
"मतलब, मैं नहीं समझा। क्या हुआ?"
बहन की शादी हुई, वह चली गई। कभी मिलने नहीं आई या आने नहीं दिया, उसे ही मालूम। कैलाश की शादी हुई , वह भी चला गया नासिक। फिर परिवार कहा रहा। रही सिर्फ माॅं।
"आज ही आया हूॅं। परिवार में सब ठीक ठाक है न।"
"परिवार ही नहीं रहा।"
"मतलब, मैं नहीं समझा। क्या हुआ?"
बहन की शादी हुई, वह चली गई। कभी मिलने नहीं आई या आने नहीं दिया, उसे ही मालूम। कैलाश की शादी हुई , वह भी चला गया नासिक। फिर परिवार कहा रहा। रही सिर्फ माॅं।
"बकरियां कौन संभालता है?"
"सब मर गई। किस वजह से मरी यह आज तक पता नहीं चला।"
"फिर बहन की शादी कैसे की?"
"ब्याज से पैसें निकालकर की। इन कारणवश तो काॅलेज छोड़कर खेत में काम कर रहा हूॅं। पैसें वापिस देने के लिए। माॅं भी काम करती रहती है।"
"कैलाश के शादी को कितने दिन हुए?"
"सब मर गई। किस वजह से मरी यह आज तक पता नहीं चला।"
"फिर बहन की शादी कैसे की?"
"ब्याज से पैसें निकालकर की। इन कारणवश तो काॅलेज छोड़कर खेत में काम कर रहा हूॅं। पैसें वापिस देने के लिए। माॅं भी काम करती रहती है।"
"कैलाश के शादी को कितने दिन हुए?"
"डेढ़ साल।उसे लड़का भी हुआ,अभी।"
"तुम्हारी माॅं कैलाश के साथ होगी।"
"नहीं। घर पर है।उसे कहा है माॅं के लिए समय।
माॅं को जब से पता चला तब से वह बच्चे को देखना चाहती है, लेकिन लेकर कौन जाएगा? मुझे मालिक छुट्टी नहीं देता। उसे समय नहीं है। बालू भैया,घर आइए । माॅं आप को बहुत याद करती है। मैं चलता हूं,काम पर जाना है।"
मैं जिस अवस्था में था,उसी अवस्था में घर से बाहर निकला और सावित्री काकी के घर की ओर बढ़ा। घर जाने के बाद दरवाजा खटखटाया। कुछ समय बाद दरवाजा खुला,तो सामने सावित्री काकी दिखाई दी। मुझे देखकर वह बहुत खुश हुई, जैसे उसे मेरे रुप में कैलाश दिखाई दिया हो। वह बोल नहीं सकती थी, लेकिन इशारों से उनके भाव मुझे समझ आते थे।वह साक्षात बोल रही है ऐसा भास होता था। सावित्री काकी मुझे इशारों में बोली -"आइए बेटा। बैठो।"
"तुम्हारी माॅं कैलाश के साथ होगी।"
"नहीं। घर पर है।उसे कहा है माॅं के लिए समय।
माॅं को जब से पता चला तब से वह बच्चे को देखना चाहती है, लेकिन लेकर कौन जाएगा? मुझे मालिक छुट्टी नहीं देता। उसे समय नहीं है। बालू भैया,घर आइए । माॅं आप को बहुत याद करती है। मैं चलता हूं,काम पर जाना है।"
मैं जिस अवस्था में था,उसी अवस्था में घर से बाहर निकला और सावित्री काकी के घर की ओर बढ़ा। घर जाने के बाद दरवाजा खटखटाया। कुछ समय बाद दरवाजा खुला,तो सामने सावित्री काकी दिखाई दी। मुझे देखकर वह बहुत खुश हुई, जैसे उसे मेरे रुप में कैलाश दिखाई दिया हो। वह बोल नहीं सकती थी, लेकिन इशारों से उनके भाव मुझे समझ आते थे।वह साक्षात बोल रही है ऐसा भास होता था। सावित्री काकी मुझे इशारों में बोली -"आइए बेटा। बैठो।"
मैंने कहा-" कैसी है आप? सब अच्छा है न।"
सावित्री काकी ने गर्दन हिलाते हुए कहा-"जो है अच्छा है।"
मैंने कहा- "कैलाश का फोन आता है क्या? आप से आता है मिलने?।"
सावित्री काकी इशारों में बोलने लगी-" न फोन आता है न मिलने। मैं उसे बोलने और उसके बेटे को देखने के लिए तरस रही हूॅं। उसके साथ समय बिताना भी चाहती हूॅं।"
मैंने कहा-"आप को पैसों की जरूरत है?"
सावित्री काकी इशारों में बोली- "मुझे पैसों की जरूरत नहीं है। मुझे अकेलापन सता रहा है। मुझे व्यक्त होने के लिए अपना कोई चाहिए, बस्स!"
मैंने कहा- "आप का परिवार तो बड़ा है। फिर तुम्हें किस बात की चिंता।"
सावित्री काकी इशारों में बोलने लगी- "परिवार बड़ा होने से कुछ नहीं होता, उनमें अपनापन होना चाहिए। नहीं तो पास होकर भी इंसान दूर होते हैं। माणिक मेरा बेटा है ,पास है लेकिन कभी मुझे प्यार से बात नहीं करता। समाज के लोग अक्सर मुझे गूॅंगी नाम से पुकारते हैं, तब मुझे ज्यादा बुरा नहीं लगता । किंतु जब माणिक मुझे गूॅंगी कहकर बोलता है,तब बहुत तकलीफ होती है।"
मैंने कहा-"मैं कैलाश और माणिक को समझाता हूॅं।"
सावित्री काकी ने गर्दन हिलाते हुए कहा-"जो है अच्छा है।"
मैंने कहा- "कैलाश का फोन आता है क्या? आप से आता है मिलने?।"
सावित्री काकी इशारों में बोलने लगी-" न फोन आता है न मिलने। मैं उसे बोलने और उसके बेटे को देखने के लिए तरस रही हूॅं। उसके साथ समय बिताना भी चाहती हूॅं।"
मैंने कहा-"आप को पैसों की जरूरत है?"
सावित्री काकी इशारों में बोली- "मुझे पैसों की जरूरत नहीं है। मुझे अकेलापन सता रहा है। मुझे व्यक्त होने के लिए अपना कोई चाहिए, बस्स!"
मैंने कहा- "आप का परिवार तो बड़ा है। फिर तुम्हें किस बात की चिंता।"
सावित्री काकी इशारों में बोलने लगी- "परिवार बड़ा होने से कुछ नहीं होता, उनमें अपनापन होना चाहिए। नहीं तो पास होकर भी इंसान दूर होते हैं। माणिक मेरा बेटा है ,पास है लेकिन कभी मुझे प्यार से बात नहीं करता। समाज के लोग अक्सर मुझे गूॅंगी नाम से पुकारते हैं, तब मुझे ज्यादा बुरा नहीं लगता । किंतु जब माणिक मुझे गूॅंगी कहकर बोलता है,तब बहुत तकलीफ होती है।"
मैंने कहा-"मैं कैलाश और माणिक को समझाता हूॅं।"
सावित्री काकी इशारों में बोलने लगी- "किसी को मत समझाना। वे नादान
नहीं हैं । जो है अच्छा है। मेरी किस्मत ही ऐसी है ,उसे कौन क्या
करेगा। हां, लेकिन एक बात सच है, गूॅंगे व्यक्ति की ज़िंदगी पीड़ादाई
होती है। मैं गूॅंगी हूं इसका कतहीं दुख नहीं है, किंतु मैं सब सुन
सकती हूं , इसका ज्यादा दुख है। क्योंकि लोग इतना कुछ बोलते हैं,
मैं सुनती हूं, वेदना सहती हूं,लेकिन कुछ बोल नहीं पाती। मेरे दिल
में बहुत कुछ है अच्छा-बुरा। शाब्दिक पीड़ा से परिशान हूॅं। दिल का
बोझ हालका करना चाहती हूं,लेकिन सुनने के लिए कोई तैयार नहीं।
मुझे भले ही बोलना नहीं आता हो, लेकिन भावना तो व्यक्त
कर सकती हूॅं। मैंने बहुत दिनों बाद मनमुक्त बात की
बालू । अब दिल का बोझ हालका हुआ । मेरी एक ही इच्छा है,
समाज में तुम्हारे जैसे व्यक्ति का निर्माण हो । तब गूॅंगे,
बहरे को मानसिक आधार मिलेगा। जीने की आस भी...।"
संक्षिप्त परिचय
नाम: वाढेकर रामेश्वर महादेव
इमेल: rvadhekar@gmail.com
पता: हिंदी विभाग, डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय,औरंगाबाद- महाराष्ट्र- 431004
लेखन:'चरित्रहीन' 'दलाल', 'सी.एच.बी.इंटरव्यू', 'लड़का ही क्यों?' आदि कहानियाॅं पत्रिका में प्रकाशित।
भाषा , विवरण , शोध दिशा , अक्षरवार्ता, गगनांचल,युवा हिन्दुस्तानी ज़बान,साहित्य यात्रा,विचार वीथी आदि पत्रिकाओं में लेख तथा संगोष्ठियों में प्रपत्र प्रस्तुति।
संप्रति: शोध कार्य में अध्ययनरत।
चलभाष: 9022561824
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