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गुरुवार, 3 मार्च 2022

अगर मगर दो भाई थे

 
बाल साहित्यकार निरंकार देव सेवक
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 शिवचरण चौहान
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अगर मगर दो भाई थे।
करते रोज लड़ाई थे।
अगर, मगर से छोटा था।
मगर ,अगर से मोटा था।।
अगर अगर कुछ कहता था।
मगर नहीं चुप रहता था।।
बोल बीच में पड़ता था।
और मगर से लड़ता था।।
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एक शहर  है चिकमगलूर।
वहां बहुत रहते लंगूर।
एक बार तो मियां गफूर।
खाने गए वहां अंगूर।।
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ये बाल गीत निरंकार देव सेवक के हैं। निरंकार देव सेवक का जन्म 19 जनवरी 1919 को बरेली शहर में हुआ था। उनकी मृत्यु 22 फरवरी 1979 को बरेली के जिला चिकित्सालय में हृदय गति रुक जाने से हो गई थी। सेवक जी एम ए, एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की और बरेली में ही वकालत करने लगे। बरेली के एक वकील राम जी शरण के संसर्ग में आकर निरंकार देव सेवक वकील बन गए और राम जी शरण वकील के साथ साथ कवि बन गए। वह बरेली बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। सेवक जी के मित्र हरिवंश राय बच्चन से जो बरेली आने पर अक्सर सेवक जी के घर पर ही ठहरते थे। एक कवि सम्मेलन में बच्चन जी को कविता पढ़ते देखकर तेजी सूरी नाम की एक लड़की उनकी तरफ आकर्षित हुई और फिर निरंकार देव सेवक के सहयोग से तेजी सूरी का हरिवंश राय बच्चन के साथ विवाह हो गया और तेजी सूरी तेजी बच्चन बन गईं। अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन दो बेटे हुए। झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में।
हरिवंश राय बच्चन के लिए ही लिखा गया था।
प्रसिद्ध गीतकार किशन सरोज निरंकार देव सेवक से गीत गजल लिखना सीखते थे। भारत भूषण गोपालदास नीरज सहित हिंदी के सभी प्रमुख कवि निरंकार देव सेवक के घर पर आते थे।
निरंकार देव सेवक ने बड़ों के लिए भी खूब गजलें और गीत लिखे हैं किंतु बाल साहित्य के लिए उन्होंने बहुत काम किया है। निरंकार देव सेवक की कविताएं उन दिनों सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में छपा करती थीं। और प्राथमिक पाठशाला में उनकी कविताएं पढ़ाई जाती थीं।
आंधी आई ताबड़तोड़।
दिए पहाड़ों के मुंह मोड़।।
इक तिनका  था बहुत हंसोड़।
बोला, अा तू मुझको तोड़।।
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निरंकार देव सेवक बच्चों के कविता में उपदेश देना ठीक नहीं समझते थे उनका कहना था जो बाल गीत बच्चों को अच्छे लगे वैसे ही गीत लिखने चाहिए।
तुम बनो किताबों के कीड़े
हम खेल रहे मैदानों में।।
तुम घुसे रहो घर के अंदर।
तुमको है पंडित जी का डर।
हम सखा तितलियों के बनकर
उड़ते फिरते उद्यानों में।।
तुम र ट रात दिन अंग्रेजी
कह ए बी सी डी ई एफ जी।
हम तान मिलाते हैं  कू कू
करती कोयल की तानों में।।
हम खेल रहे मैदानों में।।
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चुहिया रानी कहां चली।
यहां चली या वहां चली।
लगती हो तुम बहुत भली।
चलती फिरती मूंगफली।।
+++++++!
हमको लड्डू कचोरी गरम चाहिए।
और सोने को बिस्तर नरम चाहिए।।
एक चींटी के बच्चे ने मुझसे कहा
नन्हे-मुन्नों पर करना रहम चाहिए।।
पापा बोले कि बेटा बड़े तुम हुए
तुमको शैतानियां करना कम चाहिए।।
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दूर देश से आई तितली
चंचल पंख हिलाती।
कली कली पर फूल फूल पर
इतराती इठलाती।।
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मच्छर बोला ब्याह करूंगा
मैं तो मक्खी रानी से।
मक्खी बोली जा जा पहले
मुंह तो धो आ पानी से।।
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शिवचरण चौहान
कानपुर 
मौलिक अप्रकाशित
9369766563

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