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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

स्वप्न का आकाश मैला हो गया है

प्रशान्त उपाध्याय
 
स्वप्न का आकाश मैला हो गया है
क्यों भला विश्वास मैला हो गया है
प्यार में यों घुल गया है पश्चिमी रंग
रूप का मधुमास मैला हो गया है
तैरता है इक अजाना डर हवा में
व्यक्ति का अवकाश मैला हो गया है
बज रही है बस्तियों में द्वेष की धुन
प्रीति का उल्लास मैला हो गया है
ज़िन्दगी के दाँव भी मुमकिन नहीं अब
आजकल हर ताश मैला हो गया है
सब यहाँ भूगोल गढ़ने में मगन हैं
इसलिए इतिहास मैला हो गया है
मंच तो जागीर हैं अब जोकरों की
काव्य का अनुप्रास मैला हो गया है
(""थोड़ी बहुत ग़ज़ल की कोशिश"" से)

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