-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
मेरा वही दोस्त
जो लोगों की नज़रों में
बड़ा मुंहफट और बदतमीज है
जो गाहे- बगाहे
कभी भी - कहीं भी
मुझसे मिलते रहता है
मुझे कई बार
वह अच्छा लगता है
उनकी बातें अच्छी लगती है
पर लोगों को वह फूटी आंख भी नहीं सुहाता है
मैं अक्सर उसके सवालों से परेशान रहता हूं
मेरे हर काम पर
वह बेहिचक सवाल उठाता है
मेरा मन करता है कि
उससे दोस्ती तोड़ लूं
उससे मिलना भी नहीं चाहता
उनके सवालों से
पल्ला झाड़ने की कोशिश करता हूं
पर वह है कि
अपने चिर परिचित अंदाज में
कुटिल मुस्कान बिखेरता हुआ
बार - बार मेरे सामने आ धमकता है
मैं यह समझ नहीं पाता कि
मेरे लाख़ पीछा छुड़ाने की कोशिशों के बावजूद
वह आख़िर मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ता ..?
यदि कभी उसके मन माफिक
कोई काम कर लेता हूं
तो वह बड़ा खुश होता है
मुझे बार - बार शाबाशी देता है
मैं भले ही उसे भला - बुरा कहता हूं
कोसते रहता हूं अक्सर
पर वह कभी बुरा नहीं मानता
वह दिखने में मेरा हमशक्ल-सा ही लगता है
पर वह है मुझसे बिलकुल अलग
बड़ा जासूस है वो
पता नहीं कैसे
मेरे कहीं होने की खबर उसे हो जाती है
मैं कभी चुपके - चुपके
अपनी क्षुद्र वासनाओं को
पूरा करना चाहता हूं
वह दबे पांव वहां भी पहुंच जाता है
अपनी दोनों भौंहें चढ़ाते हुए
उंगली हिलाते हुए
धीरे से कहता है - ना ना ना ..।
एक बार तो निराश होकर
कुछ और ही सोच लिया था
तब उस सोच से
उसने ही मुझे बाहर निकाला था
कई - कई बार अब भी
उससे चिढ़ जाता हूं
पर इतना भी नहीं कि
उससे दोस्ती तोड़ लूं।
9755852479
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