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शनिवार, 11 जुलाई 2020

डॉ किरण मिश्रा की कविताएं

( 1 ) मेरा मन ब्रह्माण्ड है

हम एक पसली से बनी आत्माएं है
जिनका डेरा ब्रह्मांड में है
मैं ब्रह्मांड के उस कोने में रुकना चाहती हूँ
जहां आत्माओं ने  प्रेम गीत गाये है
ये देह उन गीतों का अंकुर है
तुम्हारी भुजाओं के कसाव से
मेरी देह से प्रस्फुटित होती सिसकिया
चक्रीय पुनर्जन्म की संभावनाओं का मार्ग है
जो नीचे बहुत नीचे पृथ्वी पर हस्तांतरित हो रही है।

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( 2 ) मैं उसके जोड़े में उसकी दो आत्मा हूँ

प्रकाश पुंज में समा उठता है प्रेम
तुम्हारी देह की सुगंध
मेरी सांसों में समाती है


धरती अपनी धुरी पर घूमती है
आकाशगंगा के पार
हमारे ब्रह्माण्ड के भेद धीरे धीरे खुलते है


दो तारे सदियों पुरानी भाषा मे फुसफुसाते है
फुसफुसाहट नाद में बदलती है
नाद और बिंदु का मिलन एक नया ब्रह्माण्ड रच रहा है।

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( 3 ) आत्माएं घर लौटती हैं


अश्वत्थ और शमी
लकडी के दो टुकड़े आत्माओं के घर है
जिनकी ऊष्मा से  एक महाप्रकंपन के साथ
प्रेम के स्वर ब्रह्मांड में बिखर जाते है


रहस्य  बुनती आत्माएं
एक सिरा पकड़ाती है अव्यक्त सत्ता के
और दूसरा सिरा लेकर निकल पड़ती है
सृष्टि बुनने को।

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( 4 ) .स्त्रियां फूल सींचती है

अन्न पैदा करती स्त्री
गढ़ती हैं मन
जल खोजती स्त्री
देती है प्राण
देह की ऊष्मा देती  स्त्री
रचती है सृष्टि
और ब्रह्मांड जगमगा उठता है।

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( 5 ) .प्रेम का ब्रह्माण्ड ही हमारे गीत है


तुमने बाँसुरी में फूंक मारी है
ध्वनि से प्रज्ज्वलित हो गई अग्नि
सारे सत्य और सौंदर्य एक साथ खड़े हो,
कर रहे है स्नान अग्नि का

मैंने लगा लिए है हाथ अपनी आंखों में
हर अंधेरा हटाने को
सारा अंधेरा आकाश से परे दिखाई देता है
देह का ब्रह्माण्ड स्वर्ग नरक से  दूर है
हमारे साथ सिर्फ हमारी आत्माएं है
जो सवार है
सत्व राजस तमस पर
ब्रह्माण्ड उर्वर हो रहा है आत्माओं के साथ। 

पता -
गाज़ियाबाद
kiranpmg@gmail.com



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