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गुरुवार, 28 मई 2020

प्रकाश कुमार खोवाल (अध्यापक) की रचनाएं

 
रचयिता-प्रकाश कुमार खोवाल (अध्यापक)
  (1)     * कामयाब *

वक्त  वो  आ  गया है,  जिसका तुझे इंतजार था
बन के दिखा तू सितारा, जिसके लिए तू बेकरार था
अब तुम हो जाओ तैयार, सुबह को तेरा इंतजार है
रख यकीन तू अब, तेरी काबिलियत तेरा हथियार है

मायूस मत होना,तेरे सिर पर हर वक्त खुदा का हाथ है
अब तुझे घबराना नहीं, दुआ हजारों कि तेरे साथ है
बस चलते जा अपनी राह पर, मंजिल को तेरा इंतजार है
तेरा जुनून, तेरा हौसला ही,  तेरा सबसे बड़ा हथियार है

आज तक मां बाप ने तेरे,  हर सपने को पूरा किया है
उन्होंने अपने जीवन का, हर पल सिर्फ तुझे ही दिया है
मौका है अब तेरे हाथ में,  जाकर उनका कर्ज चुका दे
उड़ान भर आसमां की ओर, ज्ञान से अपने आसमां झूका दे

डाल दे जान और जुनून, बस जीतकर तुझे वापस आना है
अपने मां-बाप के लिए, एक खूबसूरत पंरिदा तुझे लाना है
अब पीछे नहीं मुड़ना है, अपनी मंजिल को तुझे पाना है
अब लड़ कर तुझे दिखाना है, “कामयाब” बनकर आना है 
                
 (रचयिता-प्रकाश कुमार खोवाल जिला-सीकर, राजस्थान)


          (2) 🌴  मासिक धर्म 🌴

🌲मासिक धर्म ही,  औरत को संपूर्ण बनाता है
यही धर्म उसे, नवसृजन के लिए काबिल बनाता है
फिर भी घबराती है,   नारी इस मासिक धर्म से
यह मासिक धर्म ही, उसकी नवसृजनता का प्रतीक है

🌲अगर मासिक धर्म ना होता, तो तुम भी ना होते
और तुम अपने जीवन की, शुरुआत से घिन्न करते हो
पर आज ना जाने, क्यों हर किसी की निगाह में
नारी होती है अपवित्र, उस मासिक धर्म के दिनों में

🌲यह मासिक धर्म प्राकृतिक-चक्र है, इसमें उनका दोष नहीं
फिर भी मंदिर में प्रवेश नहीं, जब उनकी कोई गलती नहीं
मदद को किसी का हाथ नहीं, फिर भी काम में आराम नहीं
क्या मतलब है किसी से, जब उसका किसी को ध्यान नहीं

🌲अंधविश्वास की देखो पट्टी, लोगों की आंखों में बंधी 
  यह नहीं करना वो नहीं छूना,  मां भी कहती है यही
  आज भी गांव का हाल वही, विचार बदले ही नहीं
  यह “मासिक धर्म” है, पिछले जन्म के बुरे कर्म नहीं

🌴   रचयिता-प्रकाश कुमार खोवाल (अध्यापक) जिला-सीकर राजस्थान 🌴




          (3)    🌴 पर्यावरण 🌴

बिन बरसात के सुख रहा है, धरती पर सारा जीवन
खाली पड़े हैं कूंए- बावड़ी, खाली पड़े हैं सारे बर्तन

 सुख रही है धरती बिन पानी, हर प्राणी है दुखी जहां
 नीरस दिख रहे हैं तरुवर भी, सूखे पड़े हैं उपवन भी यहां

मां अपने बेटे से कहती, बेटा बहुत दु:ख सहना होगा
घास फूस के इस महल में, बिना सुविधा रहना होगा

पेड़ों को हम काट रहे हैं, जीवन को अपना उजाड़ रहे हैं
शहर- शहर में देखो आज, बहुमंजिला इमारत बना रहे हैं ।

हर श्वास में जहर घुला है, भोजन में भी मिला है नशा
पानी भी नहीं है शुद्ध पीने को, लोगों की हो रही है दशा।

यहां पेड़ लगाते तो कम देखा है, पर कटते बहुत देखा है
मैंने इन हवाओं की शुद्धता को भी, कम होते देखा है।


संभल जाओ अब भी समय है, देश को स्वच्छ बना लो
इस धरा पर पेड़ पौधे लगाकर, तुम “पर्यावरण” को बचा लो।

      🍂 रचयिता- प्रकाश कुमार खोवाल (अध्यापक) जिला-सीकर 🍂


            (4) जिंदगी

हर मोड़ पर एक नया एहसास है जिंदगी
मेरे कुछ अनूठे सपनों की सौगात है जिंदगी
मैंने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया
अपनी राह के कांटों को खुद हटाया
मेरी असफलताओं ने मुझे झुकने ना दिया
मंजिलों ने मेरी मुझे रुकने ना दिया

मेरी तकदीर की क्या बात करें
कुछ पुराने रिश्तों को भूलाएं तो कुछ नए अपनाएं
कठिनाइयों से बहुत कुछ सीखा है मैंने
खुद के लिए जी लिया, जीना है अब अपनों के लिए
राहों में अनुभव क्या खूब मिले मुझे
मैं हर रोज वक्त के साथ निखरता गया

मेरे अपनों ने ही मुझे झुकाने की नाकाम कोशिश की
लेकिन मेरी चाहत ने मुझे झुकने ना दिया
जिंदगी की राह में खुद को अकेला पाया
लेकिन हालात तूने मेरे मुझे रुकने ना दिया
हर मोड़ पर एक नया एहसास है जिंदगी
मेरे कुछ अनूठे सपनों की सौगात है जिंदगी

                   (👉प्रकाश कुमार खोवाल जिला-सीकर)से



                     (5)  🍀 बेटी 🍀

  🏵️इस दुनिया में आने का, हक उसे भी था
               मां की गोद  में सोने का, हक उसे भी था
  घर में हंसने - हंसाने का, हक उसे भी था
                अपनी मर्जी से जीने का, हक उसे भी था

  🏵️अपनों के बीच प्यार महसूस करने का, हक उसे भी था
               दोस्तों के साथ घुल-मिल जाने का, हक उसे भी था
सपनों के राजकुमार के साथ, जीवन बिताने का हक उसे भी था
             हंसते खेलते परिवार में जन्म लेने का, हक उसे भी था
🏵️एक सपना आंखों में,शोहरत कमाने का उसे भी था
             दो वक्त रोटी अपने मेहनत की,खाने का हक उसे भी था
देखा सपना मकान बनाने का,उसकी नींव डालने का हक उसे भी था
          ज़ुल्म एक बार फिर ढाया गया, नाबालिक ही उसको ब्याहा था
 🏵️"बेटी" को इस दुनिया में लाने का,हक उसे भी था
             ममता की छांव में लोरी सुनाकर,सुलाने का हक उसे भी था
 मगर  समाज ने आज फिर, उसकी गोद को सुना रखा था
             मां का दिल रोया होगा ,जब उसने अपनी बेटी को खोया था

  🏵️  रचयिता-प्रकाश कुमार खोवाल ,जिला-सीकर राजस्थान 🏵️

रचयिता-प्रकाश कुमार खोवाल (अध्यापक)
पिता- श्री धुड़ाराम खोवाल ,
जिला सीकर, राजस्थान (332027)
मोबाइल न. 8003832015

prakashkhowal2016@gmail.com



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