मनोज राठौर 'मनुज'
उम्मीद का चराग़ जलाकर मक़ीन रख |
होंगे कभी उजाले तू इतना यक़ीन रख |
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बेशक सँभाल कर तू पुराना ही दीन रख |
लेकिन ख़याल दिल में तो ताजा तरीन रख |
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चाहत -ए- आसमां में लुटादे तू हस्तियां,
पैरों तले दबाके मगर कुछ जमीन रख |
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कब तक रहेगा शेर की छुपके तू खाल में,
कुछ तो जिगर में ख़ाबो तसव्वुर हसीन रख |
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लाशें गिराने वाले तो हथियार हैं 'मनुज',
साँसे किसी को दे सके ऐसी मशीन रख |
मनोज राठौर मनुज
मो-8168940401
manojamanuja12345@gmail.com
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