मुसाफिर छोड़ता है जब नगर अहसास रह जाते
मरे होते हैं वो पल जो हमारी यादों में आते
जिसे जिससे मुहब्बत हो उसी को वो खुदा कहते
मुहब्बत जब नहीं मिलती तो खुद काफ़िर वो कहलाते
न पूछो हाल हमसे दूर जाने वाले हरजाई
सवालों के जवाबों से दबे हर दर्द बढ़ जाते
गरीबी से घिरे बच्चे उठा देते हैं कूड़ों को
मिलेंगे पैसे वाले ही सड़क पे कूड़ा फैलाते
ये सोचा था बिछड़कर वो भी रोयेगा मेरे ख़ातिर
वो खुश था जह्र का फिर ज़ायका हम कैसे बतलाते
~ तान्या सिंह
गोरखपुर, उत्तर~प्रदेश
मेल : a.tnya.it@gmail.com
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