ग़ज़ल
कर दिया रिश्तों में जो ये दिवार कोरोना।
फिर भी होगा न कम कभी ये प्यार कोरोना।।
ठीक है अब नहीं मिलाते हाथ हम किसी से,
तोड़ सकता नहीं तू दिल के तार कोरोना।।
अब बरतने लगे हैं एहतियात सब के सब,
कर तू अपनी क़जा़ का इन्तजार कोरोना।
मज़हबी झगड़े अपनी अपनी जगहों पे है मगर
इक है दुश्मन से लड़ने हम भी यार कोरोना।।
तेरी कमजोरी की ख़बर सभी को हो रही है,
तेरी होगी बहुत ही जल्द हार कोरोना।।
क़ज़ा - मौत
एहतियात - सावधानी
*ग़ज़ल*
किसके होठों पर हँसी है आजकल ।
सहमा सहमा आदमी है आजकल।।
दहशतों के शोर में खामोशी सी,
जाने कितनी ज़िंदगी है आजकल।।
तीरगी का पहरा सा है हर तरफ़,
कै़द जैसे रोशनी है आजकल ।।
सोचकर रखना क़दम इस राह में,
जानलेवा दिल्लगी है आजकल।।
होश में रहना किसे हैं, है भी कौन,
बेखुद ही बेखुदी है आजकल।।
ये नुमाइश का ज़माना है मियाँ
हाशिए में सादगी है आजकल।।
✍जितेंद्र सुकुमार 'साहिर '
शायर
'उदय आशियाना 'चौबेबांधा (राजिम)
पोस्ट बरोंडा जिला गरियाबंद (छत्तीसगढ़ )493885
व्हाट्सएप नंबर 90091 87981
9827345298
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