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सोमवार, 30 मार्च 2020

हैं चल रही

हैं चल रही
हवाओं के
बुलंद हौसले।
हो रही है तबाही
आया सैलाब।
बिखरे हैं मनका से
हारिल से ख्वाब।।
सुख पखेरू
से उड़े
घायल हैं घोंसले।
सिमटे हुए कछुआ से
खोल में लोग।
समाज में फैला है
पैसों का रोग।।
देखते ही बनते
आदमी के
चोंचले।
अविनाश ब्यौहार
जबलपुर म.प्र.

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