''निलाम्बुजम श्यामल कोमलांगम,
सीता समारोपित वाम भागम ,
पानौ महासायक चारू चापं , नमामि रामं रघुवंश नाथं '' राम के चरित्र का हर क्षण -जीवन का प्रत्येक कोना -संघर्ष ,जय -पराजय,मानवीयता के प्रति समर्पण उन्हें आज भी जन-मानस में पूज्यनीय बनाता है --और पूजन भी कैसा ..जो ईश्वरत्व ,परमब्रह्म सा आदर ,गरिमा ,और वंदना का अधिकार भी प्रदान करता है ,राम नाम है संकट हरता का ,राम नाम है जीवन के भव सागर से मुक्ति दिलाने का ...राम नाम है मर्यादा का ,गरिमा का ,प्रेम और वात्सल्य का ,सम्बन्धों के उच्चतमनिर्वहन और समर्पण का ..अकथनीय है उनकी जीवन कथा ,बस श्रवण करने मात्र से ही मुक्ति संभव है ...हर युग में प्रासंगिक ,राम का चरित हर पीड़ित याचक के अंतर्मन की एक कविता है -- राम तुम्हारा चरित स्वयम ही काव्य है '' -राम काचरित्र, जीवन, और आदर्श -समय की कसौटी पर परखे जाते रहे ..चुनौतियों का सामना करते रहे पर सामाजिक मर्यादा और सदाचरण की सुन्दर सीख उन्हें भारतीय जन मानस और वांग्मय मेंअमर बना गई .मानवता के प्रबल उन्नायक -शील -गुण,धीर -वीर राम केवल तुलसी के ही आदर्श नहीं थे ,पूरे समाज के भटके क़दमों को सही दिशा निर्देश देकर अधिकारों और कर्तव्यों की प्राप्ति और निर्वहन का एक नया लक्ष्य दिया जो तब भी समयोचित था और आज भी है. वास्तव में वाल्मीकि या तुलसीकृत रामकथा के मूल में ही जन-कल्याण की भावना निहित रही है .किसी कवि ने कहा है - - ''गीत तुलसी ने लिखे तो आरती सबकी उतारी , ''राम का तो नाम है ,गाथा -कहानी है हमारी '' अयोध्या नरेश दशरथ की वृद्धावस्था में प्राप्त ,उत्तराधिकारियों [पुत्रों ]राम, लक्ष्मण ,भरत और शत्रुघ्न में से राम बड़े थे ,चारो माताओं ,पिता का प्यार दुलार भी मिला -और साकेत नगरी को उसका युवराज भी ,--- ''अवधेश के बालक चारी सदा ,तुलसी मन मन्दिर मेंविहरें ''- -''उच्चतम आदर्शों की शुभ्र शिला पर अपने चरित्र की छाप छोड़ते और संस्कारधानी अयोध्या की उन्मुक्त गलियों में ,ऊंचे प्रसादों में खिलता -पलता राम का बचपन ,माता ,पिता के संस्कारों में परिवर्द्धित होता रहा और जब वन जाने का समय आया तो हंसते हंसते पिता कीआज्ञा शिरोधार्य कर वन की राह पकड़ ली, माताएं दुःख के सागर में डूब गईं पर पारिवारिक परम्पराओं और पुत्र के कर्तव्य से राम को विमुख नहीं होने दिया ----''जो केवल पितु आयसु ताता '' ''तोजनि जाहु जनि बड़ी माता , जो पितु मातु आयसु यह दीना , तो कानन शत अवध समाना '' ये थे राम के आदर्श .वन वन भटकते ,पत्नी व् भाई के साथ दुर्गम पथ के कष्टों को सहन करते हुए भी कभी विचलित नहीं हुए ,प्रो.शिव्कुमर शर्मा लिखते हैं --''तुलसी के राम में शील, भक्ति और सौन्दर्य का सुंदर ,समन्वय है,..तुलसीने राम जैसे पात्र का सृजन कर , मृतक हिन्दू राष्ट्र की धमनियों में रक्त का संचार किया है '' राम का उद्देश्य ही था समाज का कल्याण -अपने आदर्श ,और कर्तव्यों के द्वारा उन्होंने लोकमंगल की भावना की स्थापना की थी .--परहित सरिस धरम नहिं भाई -पर पीड़ा सम नहीं अधमाई '' यही कारण है कि तुलसी का काव्य राम भक्ति से आप्लावित ऐसा सरोवर है ,जिसका अवगाहन कर सहृदय पाठक एक ओर तो अपने सामाजिक नैतिक नियमो को व्यवस्थित कर लेते हैं और दूसरी ओर अपने पारमार्थिक जीवन की सफलता का भी उद्घोष कर देते हैं .मुझे व्यक्तिगत रूप से मानस का वह प्रसंग अत्यंत प्रिय है जहाँ राम ने अपने मित्र सुग्रीव की मदद के लिए दुराचारी बाली का वध किया जिसने अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी तारा का बलपूर्वक हरण कर लिया था ,बाली उनसे पूछता है --मै वैरी सुग्रीव पियारा -कारन कवन नाथ मोहिं मारा ?''---तब राम का उत्तर मानवीय संबंधो की गरिमा को उसी ऊंचाई तक ले जाता है --''अनुज-बधू ,भगिनी सुत नारी, सुनशठ ,कन्या सम ये चारी इनहिं कुदृष्टि विलोकत जोई -ताहि बधै कछु पाप न होई ''. . आज के युग में जहा सामाजिक सम्बन्ध तार तार हो रहे हैं ,नैतिकता का घोर पतन हो रहा है ,वहां आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व भी राम जैसे आदर्श चरित्र का निर्माण कर तुलसी ने समाज का पथ प्रदर्शन किया था .मित्र और मित्रता की परिभाषा राम के अतिरिक्त और कौन दे सकता है ?--''जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी,,,,,,'' जब राम राजा बने ,तब पूरी अयोध्या ही उनका परिवार बन गई थी ,उनका दुःख राम का अपना दुःख था ,प्रजा का हित साधन करते समय यदि व्यक्तिगत हित का त्याग करना पड़े तो वह जायज है .--''राम राज बैठे तिर्लोका ,हर्षित भयऊ गयौ सब शोका 'राम जैसा राजा मिलना दुर्लभ था 'जिनकी घोषणा थी ---''जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी , सो नृप अवसि नरक अधिकारी ''..आज के दौर में सत्ता का मद बड़े बड़ों को अँधा बना देता है वहीं राजा के रूप में राम ने प्रिय सीता का भी परित्याग करने में संकोच नहीं किया ,धोबी जैसे निम्न वर्ग के नागरिक को भी न्याय मिला , मै नमन करती हूँ तुलसी को -जिन्होंने राम के आदर्शों को घर घर तक पहुँचाया ,नमन मर्यादा पुरुषोत्तम राम को ,जिनके आदर्श ,चरित्र की शुभ्रता आज भी प्रासंगिक है ,सत्य की स्थापना के लिए ,असत्य के विनाश और अधर्म को समूल नष्ट कर सुधर्म की स्थापना करने वाले प्रभु राम को मेरा शत शत प्रणाम -- -''सत्य हारा नहीं आज तक शक्ति से , नाश ,संहार ,संग्राम के सामने , सिर झुकाना पड़ेगा परशुराम को , शांति के देवता राम के सामने ''
---पद्मा मिश्रा--जमशेदपुर
LIG--114,ROW HOUSE ,आदित्यपुर -२
जमशेदपुर -13-,JHARKHND
EMAIL ,-- padmasahyog@gmail.com
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बुधवार, 4 मार्च 2020
राम के आदर्श और तुलसी
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