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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

नहीं बिकेगी जमीन

 सुरेश सर्वेद की कहानी . नहीं बिकेगी जमीन

पुस्तैनी सम्पत्ति को बिगाड़ने की जरा सी भी इच्छा गोविन्द के मन में नहीं थीण्वह चाह रहा था जिस तरह उसके दादा की सम्पत्ति को पिता ने सहज कर रखा और पूरी ईमानदारी के साथ उस सम्पत्ति की रक्षा कीए उसी तरह उसका पुत्र जीवेश भी उसे सम्हाल कर रखे पर जीवेश खेती किसानी न करके व्यवसाय करना चाहता थाण् वह भी जमीन बेंचकरण्गोविन्द की पत्नी मालती ने कहा . जब लड़का खेती किसानी करना ही नहीं चाहता तो उस पर जबरन क्यों लादते हो घ् वह धंधा करना चाहता है तो जमीन बेचकर उसे रुपये क्यों नहीं दे देते घ्
. मालती तुम समझती क्यों नहींण् आजकल व्यवसाय में भारी प्रतिस्पर्धा हैण् व्यापार करने वाले ही जानते हैं कि वे कि स तरह दो वक्त की रोटी लायक कमाते हैं । पत्नी के प्रश्न का उत्तर गोविन्द ने दियाण्
. यहां लाभ . हानि सबके साथ लगा रहता हैण् हम भी तो खेत में बीज डालकर कभी . कभी हानि उठाते हैंण् जैसे हम खेती में जुआ खेलते हैं वैसे ही उसे व्यवसाय में जुआ खेलने दोण्लड़के का मन खेती . किसानी में बिलकुल नहीं हैण् जबरन थोपोगे तो वह मन लगाकर खेती करेगा क्या यह संभव है घ्
. तुम्हारा कहना सच है पर वह निश्चय तो करे कि आखिर कौन सा व्यवसाय करना चाहता है उसेण् किराना व्यवसाय में रखा ही क्या हैण् देख ही रही हो गॉँव में कितनी किराने की दुकान हो गयी हैण् दुकानदार दिन भर मक्खी मारते बैठे रहते हैं जिसका व्यवसाय चलता है तो वह उधारीण्
. लड़का पढ़ा . लिखा हैण्खेती . किसानी करना नहीं चाहताण् अपना हित . अहित की समझ उसे भी हैण् पढ़ . लिखकर हल जोंते क्या यह उचित है घ्
. यहीं पर तो हम मात खा जाते हैंण् यदि सभी पढ़े लिखे लोग यही सोचने लगे तब खेती कौन करेगा घ् अन्न आयेगा कहॉँ से घ् एक बात याद रखनी चाहिए कि जो जितना अधिक पढ़ा लिखा होता हैण् खेती करता है तो वह अधिक अन्न उत्पन्न करने की क्षमता रखता है ण्पढ़ा . लिखा व्यक्ति अत्याधुनिक कृषि करके कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी करता हैण् पर पता नहीं आजकल के बच्चों को क्या हो गया है ए जरा सा पढ़ा लिखा नहीं कि वह दूसरे के घर नौकरी करना चाहेगा या फिर व्यवसायण्
. तुम सदैव अपनी बात मनवाने तर्क पर तर्क देते होण्
. मैंने जीवन का कटु अनुभव किया हैण् मैं कोई जीवेश का शत्रु तो नहींण् मैं भी उसका हित चाहता हूं पर उसकी माँग मुझे उचित नहीं लगतीण् क्या तुम भी यही चाहती हो कि हम उस व्यवसाय के लिए अपनी जमीन बेचकर राशि झोंक दें जिसके विषय में हमें जरा भी जानकारी न हो घ्
मॉँ . पिता में चल रहे वार्तालाप को जीवेश सुन रहा थाण् पिता के कठोर वाक्य को जीवेश सह नहीं सकाण् वह सामने आयाण् कहा . दद्दा आप व्यवसाय के लिए पैसा नहीं देना चाहते ए न दे पर याद रखे मैं खेती . किसानी नहीं करुंगा यानि नहीं करुंगाण्
. तेरी मर्जी में जो आता है करण्ण्ण् मुझे यह मंजूर नहीं कि खेती बेचकर व्यवसाय कराऊं ण्
बहस बढ़ती इससे पहले जीवेश वहां से चलता बनाण्
रात गहरा चुकी थीण्जीवेश अब तक लौटा नहीं थाण्उसकी मां मालती की आँख नहीं लग पायी थीण्गोविन्द खर्राटे भर रहा थाण्मालती की द्य्ष्टि बराबर दरवाजे पर टिकी थीण् मालती को लगा रात गहरा चुकी हैण्उसने खर्राटे भर रहे गोविन्द को झकझोर कर कहा . तुम खर्राटे भर रहे होण्जीवेश अब तक नहीं आया हैण्
. आ जायेगाण्ण्ण्ण्।
गोविन्द ने करवटे बदलते हुए नींद में ही बड़बड़ायाण्मालती सोने का प्रयास करती रही पर नींद आंखों से दूर हो चुकी थीण् अब मालती के मन में तरह . तरह की शंकाएं . कुशंकाएं जन्म लेने लगीण्उससे रहा नहीं गया तो उसने फिर से गोविन्द को झकझोरा . तुम्हें जरा भी चिंता नहींण् पता नहींए लड़का कहां चला गया होगा घ्
. तुम जैसी माताओं की वजह से ही संताने बिगड़ती हैण् अरीए वह आ जायेगा नण् तुम खुद सोती नहीं जो सोया है उसे टोचक . टोचक कर उठाती होण् तुम चुपचाप सो क्यों नहीं जाती घ् गोविन्द ने झल्लाकर कहा ण्
. तुम पता क्यों नहीं कर लेते घ्
. क्या पता करुंए कहां पता करुंण् गया है तो आयेगा ही ण्ण्ण्ण्ण् ।
और फिर गोविन्द की आँख लगने  लगीण् रात गहराने के साथ मालती समय का अंदाजा लगाती रहीण् आधी से भी ज्यादा रात गुजर चुकी थी पर जीवेश का पता नहीं थाण्पुत्र के इंतजार में मां की आंख कब लगी वह जान नहीं पायीण्पहट होने के साथ उसकी आंखें खुलीण्जीवेश आया नहीं थाण् गोविन्द अब तक नींद में ही थाण्मालती ने कहा . तुम घोड़े बेचकर सो रहे होण् तुम्हारा लड़का रात भर नहीं आयाण्इसकी जानकारी तुम्हें  हैण्ण्ण्ण्ण् घ्
अब गोविन्द रटपटायाण् कहा . क्याण्ण्ण् जीवेश रात भर नहीं आयाण्ण्ण् घ्
. नहींए मैं झूठ बोल रही हूंण्ण्ण् । मालती ने झल्लाकर कहाण्
नींद खुलते ही गोविन्द की आदत लोटा लेकर दौड़ने की थी पर आज वह इस आदत को बिसर गयाण्वह दौड़ा दिलीप के घर की ओरण्दिलीपए जीवेश का अभिन्न मित्र थाण् जब दिलीप से उसने जीवेश के संबंध में पूछा तो दिलीप ने बताया . कल कोई तीन . चार बजे के लगभग उससे मेरी मुलाकांत हुई थीण्उसके बाद वह कहां गया मैं भी नहीं जानताण्वह कुछ उदास सा थाण् घर में कोई बात हो गयी क्या काका घ्
. बात कोई बहुत बड़ी नहीं थी दिलीपण्वह चाहता है मैं जमीन बेचकर उसे व्यवसाय करने पैसा दूंण् अब तुम ही बताओए क्या व्यवसाय करने के लिए जमीन बिगाड़ना अच्छी बात है घ्
. काका आप भी नए यदि वह चाहता है व्यवसाय करना तो आप उसे रुपये क्यों नहीं दे देते घ्
. पर मेरे पास इतने रुपये नहीं है कि बिना जमीन बिगाड़े उसे दे सकूं ण्
. एक ही तो लड़का हैण् उसकी इच्छा पूरी नहीं करोगे तो काम कैसे बनेगाण् अब पता नहीं वह कहां गया होगाण्मेरी मुलाकात तो हुई थी पर उसने ऐसा कुछ नहीं बताया कि वह कहां जायेगाण्उसने इतना अवश्य कहा था . खेती . किसानी मुझसे होगी नहींण् कहीं जाकर नौकरी करनी पड़ेगीण् मैं तैयार होकर पता करता हूं वह कहां गया होगाण्ण्ण्ण् ।
दिलीप तैयार होने चला गयाण् चाय आ गयी थीण् चाय की चुस्की लेते हुए उसका मन अशांत थाण्उसके भीतर एक प्रकार से अज्ञात भय घर करता जा रहा थाण् उसमें विचार उठने लगा था कि जीवेश कोई ऐसी . वैसी कदम न उठा ले जिससे उसे परेशानी में पड़ना पड़ जायेण्चाय खत्म कर उसने खाली कप जमीन पर रख दियाण् दिलीप तैयार होकर आयाण् गोविन्द ने कहा . मैं उसकी बात मानने तैयार हूंण् भले ही जमीन बेचनी पड़े मैं उसे व्यवसाय करने पैसा दूंगाण्
दोनों निकल पड़े जीवेश की खोज मेंण् वे सारा दिन आसपास के गाँवों में जीवेश की खोज करते रहेण् उसकी खोज खबर लेते रहेण् सारा दिन निकल गयाण् जीवेश का कहीं पता नहीं चलाण्उनके अन्य संगी साथियों से जानकारी लेने का प्रयास किया गया पर किसी ने भी जीवेश के संबंध में कुछ नहीं बता सकाण्संध्या थके . हारे दोनों वापस गांव आ गयेण्घर पहुंचते ही उसकी पत्नी मालती ने पूछा . जीवेश का कहीं पता चलाण्ण्ण्ण् ।
. नहींण्ण्ण्ण्ण् ।
गोविन्द पूरी तरह थक चुका थाण्
दिन सरकता गयाण्गोविन्द ने सभी संभावित जगहों पर जीवेश का पता लगाया पर आशा जनक खबर कहीं से नहीं मिलीण्इसी तरह दिन महीना में बदल गया और छै माह हो गयेण्जीवेश का कहीं पता नहीं चलाण्एक बार तो गोविन्द के मन में इश्तिहार निकलवाने का विचार आया पर वह यह सोच कर चुप रह गया कि जीवेश आज नहीं तो कल अवश्य आयेगाण्गोविन्द आशावान था पर छैमाह बाद भी जीवेश न खुद आया और न उसकी चिठ्ठी . पत्री आयीण्मां की आंखें  रो . रो कर पथरा गयी थीण् सोच . सोच कर गोविन्द का मन बैठ गया थाण्
उस दिन छपरी की खाट पर पड़े गोविन्द कवेलू वाले छानी को निहार रहा थाण्पास ही बैठी उसकी पत्नी मालती चांवल साफ कर रही थीण् सूपे की थाप के साथ ही गोविन्द का विचार रफू चक्कर हो जाताण्अभी भी वह जीवेश के बारे में सोच रहा थाण् सूपे की थाप के बीच ही उसे अनुभव हुआ कि किसीने घर के दरवाजे की कुण्डी खटखटाया हैण् उसने मालती से कहा . लगता है किसी ने कुण्डी खटखटायीए देखो तो घ्
मालती चांवल भरे सूपे को वहीं पर रखकर दरवाजे की ओर दौड़ीण् दरवाजा खोलकर देखीण् सामने पोष्टमेन खड़ा थाण् उसने एक पत्र मालती को थमा दियाण्मालती गोविन्द के पास आयीण्पत्र उसकी ओर बढ़ाते हुए बोली . पोष्टमेन आया थाण् ये चिठ्ठी दे गयाण्ण्ण्।
क्षण भर देर किये बगैर गोविन्द खाट से उठाण् पत्नी के हाथ से पत्र लियाण् तुरंत खोलाण्यह पत्र उसके पुत्र जीवेश का थाण् मालती ने पूछा . किसकी चिठ्ठी है ण्ण्ण् घ्
. जीवेश काण्ण्ण् । गोविन्द की आँखों में चमक आ गयीण्उसने चिठ्ठी पढ़ना शुरु कियाण् पता नागपुर का दिया थाण्वह तुरंत तैयार हुआ और घर से निकलने लगाण्
मालती ने पूछा . कहां जा रहे होण्ण्ण् घ्
. मैं दिलीप के पास जा रहा हूंण् आज ही नागपुर जाकर जीवेश को ले आता हूंण्
इतना कह कर वह दिलीप के घर की ओर दौड़ाण् दिलीप घर पर ही थाण् दिलीप ने गोविन्द को देखकर कहा . कैसे आना हुआ काकाण्ण्ण् घ्
गोविन्द ने चिठ्ठी उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा . ये जीवेश की चिठ्ठी आयी हैण् वह नागपुर में रहता हैण्बेटाए उसे कैसे भी करके ले आओण् अब वह जो चाहेगाए वही होगाण्
गोविन्द का मन अधीर हो उठाण्दिलीप ने चिठ्ठी लेकर पढ़ाण् कहा . काकाए मैं कल ही नागपुर जाकर उसे ले आता हूंण्ण्ण् ।
. कल क्यों ण्ण् आज क्यों नहीं ण्ण्ण् घ्
. अभी कहां गाड़ी मिलेगी काकाण्ण् कल सुबह की गाड़ी से चला जाऊंगाण् देर रात तक उसे लेकर लौट आऊंगाण्
गोविन्द का मन उदास हो गयाण्गोविन्द चाहता था . दिलीप अभी जायेण् जितनी जल्दी हो सके लाल को लेकर आये पर यह संभव था ही नहीं उसे एक दिन प्रतीक्षा करनी ही थीण्
दूसरे दिन दिलीप नागपुर जाने के लिए निकल गयाण्जब दिलीप प्रस्थान कर रहा था तो न सिर्फ गोविन्द अपितु उसकी पत्नी मालती ने भी कई बार कहा . उसे लेकर ही आनाण्वह जो चाहेगाए जैसा चाहेगाए अब घर में वही होगाण्पुत्र के लिए वह धरती का मोह त्याग देगा कहाण्
दिलीपए जीवेश के बताये पते पर पहुंच गयाण्दिलीप को देखकर जीवेश ने उसे गले से लगा लियाण् दिलीप ने कहा . तुम यहां मजे में होए वहां तुम्हारी मां का रो . रो कर बुरा हाल हो गया हैण् तुम्हारे पिता सोच . सोच कर दुबले हो गये हैंण्ण् चलो गाँवण्ण् ।
. नहीं मित्रए मैं गाँव नहीं जाऊंगाण्ण्ण् ।
. तुम व्यवसाय करना चाहते हो नए मैंने काका को समझा दिया हैण् वे तैयार हैंए खेत बेचकर पैसा देने के लिएण्ण्।
. यदि नहीं दिए तोण्ण् घ्
. क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहींण्ण् घ्
यदि जीवेश का सबसे विश्वसनीय मित्र था तो वह दिलीप ही था ण् उसने कहा .तुम कैसी बातें करते होण्मुझे तुम पर उतना विश्वास है जितना स्वयं पर नहींण्ण् ।
. तो फिर चलोए मैं तुम्हारे विश्वास का खून नहीं होने दूंगाण्
दिलीप तैयार होकर जीवेश के साथ गाँव आ गयाण् जीवेश के आने की खबर गॉँव भर दावानल की तरह फैलीण्गाँव के लोग उसके घर पर आने लगेण् रामदीन ने कहा . बेटाए तुम चले गयेण् वहां सुख शांति से रहे होगे पर पता है तेरे माता . पिता पर क्या . क्या बीता होगा घ् दिन रात ये तुम्हारे नाम लेकर जीते मरते रहे ण्
जीवेश चुप रहाण् उसी समय घनश्याम ने आकर गोविन्द से कहा . मैंने जमीन का सौदा पक्का कर दिया हैण् कल हमें रजिस्ट्री कराने जाना हैण्
. हां ए वह तो करना ही पड़ेगाण्बारिस भी लगने वाली हैण् इससे पहले वह खेत में फसल डालने खेती की साफ सफाई भी तो करेगाण् गोविन्द ने कहाण्
रात होने के साथ एक . एक कर गाँव वाले गोविन्द के घर से छंटने लगेण् दिलीप ने कहा . काका मैं भी चलता हूंण् कल समय पर तैयार हो जाऊंगाण् रजिस्ट्री कराने जाने के लिएण्
अब घर में तीन जन रह गये थेण्गोविन्द ए जीवेश से यह पूछना तो चाहता था . जमीन बेचकर प्राप्त रुपये से कौन सा व्यवसाय करेगा पर वह डर रहा था कि बात बिगड़ न जायेण् उसने जीवेश से कुछ नहीं कहाण्
प्रात: होते ही गोविन्द उठकर तैयार हो गयाण् उसने मालती से कहा . तुम जमीन के कागजात थैली में डाल देनाण् ऐसा न हो कि जाते वक्त उसे ही लेना भूल जाऊंण्
. तुम चिंता मत करोण् मैंने सारे पर्चे पट्टे थैली में डाल दिये हैण्
माता . पिता की वार्तालाप जीवेश सुन रहा थाण्वह अंर्तद्वंद में फंसा था . वह जमीन बिकवा कर जो व्यवसाय करने को सोच रहा है क्या उचित है घ् कहीं वह भविष्य सुधारने की फिराक में उसे अंधेरे में तो नहीं धकेल रहा हैण् दादा . परदादाओं की भावनाओं के साथ कहीं वह खिलवाड़ तो नहीं कर रहा है घ् उसका एक मन कहता . वह जो करने जा रहा है वह उचित है पर दूसरे ही क्षण उसके दूसरे मन उसे भंवर जाल में फंसा देताण्
दस बज चुके थेण्गोविन्द तैयार हो चुका थाण्दिलीप और घनश्याम के साथ जमीन के खरीददार मंगलू उसके घर आयाण्गोविन्द ने जीवेश को आवाज दीण्जीवेश घर पर नहीं थाण्उसने मालती से पूछाण् मालती ने भी अनभिज्ञता जाहिर कीण् अब फिर गोविन्द के मन में शंका सिपचने लगी . कहीं जीवेश फिर से शहर की ओर तो नहीं भाग गया घ् वह बाहर निकलाण् गाँव में तीन . चार लोगों से पूछाण्पर किसी ने संतोष जनक जवाब नहीं दियाण्खेत की ओर से चरवाहा सहदेव आ रहा थाण् उसने गोविन्द से कहा . तुम जीवेश को खोज रहे हो न घ्
. हांए क्या तुमने उसे देखा है ण्ण्ण् घ्
. हांए हांण्ण्ण् मैंने उसे तुम्हारी खेत की ओर जाते देखा है ण्
. क्याण्ण्ण् घ् गोविन्द की आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गयीण् एक प्रकार से भय भी उसके भीतर सिपचने लगा . जीवेश खेत में जाकर उलटा सीधा न कर लेण् गोविन्दए घनश्याम ए मंगलू और दिलीप के साथ खेत की ओर दौड़ाण्वे खेत की मेड़ पर खड़े होकर एक एक करके आवाज दीण् उधर से आवाज आयी . मैं लीमाही खेत में हूंण् यहां आ जाओ ण्ण् ।
सबके सब लीमाही खेत की ओर दौड़े ण् उन्होंने देखा . जीवेश उथला खेत को खोदने में व्यस्त हैण् वे उसके पास गयेण् गोविन्द ने कहा . ये तुम क्या कर रहे हो घ्
. दद्दा इस पर पानी नहीं चढ़ पाता इसलिए यहां पर अन्न उत्पन्न नहीं होता हैण्उबड़ . खाबड़ जमीन को समतल बनाने में जुटा हूं ण्ण्ण्ण् ।
. अरे ए हमने तो इस जमीन को बेचने का निर्णय ले लिया हैण् अब इसकी सुधार की जिम्मेदारी हमारी नहींण् चलोए हमें इस जमीन की रजिस्ट्री कराने जाना है ण्ण्ण् ।
. नहीं दद्दा अब यह जमीन नहीं बिकेगीण्
और वह उथली जमीन को खोदकर नीचली जमीन में मिट्टी डालने लगाण्ण्ण्ण् ।

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