सुरेश सर्वेद की कहानी
![]() |
सुरेश सर्वेद |
अपने नये अन्नदाता के दशर्न के लिये लोगों की भीड़ लग गयी.अभिनव ने सबको दशर्न दिया.जो भी आया उसका मुस्करा कर स्वागत किया.अच्छी बातें की.हाल चाल पूछा.और क्या चाहिये गाँव वालों को .वे आंकलन कर लिए कि जमींदार का पुत्र उससे लाख गुना अच्छा है.अभिनव व्यवहारिक तो था ही साथ ही न उसके मुंह से किसी के लिए ऐसी गालियां नहीं निकलती थी जैसे कि जमींदार के मुँह से निकला करती थी.वह शोषक किसम का भी नहीं लगता था.मजदूरों का बराबर मजदूरी देता .किसी के घर दुख आता तो सुख आता तो वह अवश्य पहुंच जाता था.उसके इस व्यवहारिकता का परिणाम यह था कि उसके विरूद्ध में कोई कुछ सुनना पसंद ही नहीं करता था .
प्रवीण का मुंह अभिनव की प्रशंसा करते थकता नहीं था.वह अभिनव के घर काम करता था.यहीं उसने मोटर साइकिल चलाना सीखा.जब अभिनव ने ट्रेक्टर खरीद कर लाया तो उसका चालक प्रवीण बन बैठा.अब तो वह अपने आपको अभिनव के एकदम निकट का मानने लगा.उसे जिस जमींदार के घर एक ग्लास पानी नहीं मिलता था वहां अब चाय और समय बेसमय नास्ता भी मिल जाया करता था.जमींदार की बात ही कुछ और थी.वह जहां बैठा होता वहां पर जाने का साहस भी कोई नहीं कर पाता था.वह जो कहता पत्थर की लकीर होती.मगर अभिनव का व्य वहार इससे ठीक विपरित था.वह सब के साथ बैठता भी और कभी कभार चाय नास्ता तक कर लेता था.गप्पे हांक लिया करता.वह एक साधारण जन की तरह जीवन जी रहा था.प्रवीण अधिकतर समय अभिनव के घर में बिताता था सो उसका एक प्रकार से वह परिवारिक व्यक्ति बन गया था ,ऐसा गांव वालों का भ्रम था.उसके घर में ही रहने के कारण घर का छोटा मोटा काम भी वह निपटा देता था.वह अभिनव की पत्नी अमृता से घुलमिल गया था.
अक्सर अभिनव की पत्नी और प्रवीण आपस में चर्चा करते और कभी कभार जी खोल कर हंस भी लेते.उस दिन भी किसी प्रसंग को लेकर वे खिलखिलाकर हंस रहे थे कि अभिनव आ धमका. उसे बुरा तो लगा पर उसने कहा- अमृता,तुम कपड़े खरीदने शहर जाना चाहती थी न ? मैं अपने काम में व्यस्त हूं तुम प्रवीण के साथ शहर जाओ और सामान खरीद लाओ.''
प्रवीण जिस समय अभिनव की पत्नी को मोटर साइकिल के पीछे सीट में बिठा कर गाँव से निकला उस क्षण वह काफी प्रफुल्लित था.गाँव वालों ने देखा तो देखते ही रह गये.उस पर टीका टिप्पणी करने का किसी ने साहस नहीं किया.पर गाँव वाले इतना समझ चुके थे कि अब प्रवीण का भविष्य कुछ अच्छा नहीं है .
अभिनव के पास किसी चीज की कमी नहीं थी.उसे अक्सर सालता था तो अब तक पिता नहीं बन पाना.विवाह हुए दस वर्ष से भी अधिक समय गुजर चुके थे पर पिता कहलाने का उसने सौभाग्य नहीं पाया था.मगर कुछ दिनों से अमृता प्रसन्न नजर आने लगी थी. अभिनव को भी अमृता के प्रफुल्लित होने के राज का पता चल ही गया.हालांकि अभिनव प्रसन्न था पर उसकी प्रसन्नता आत्मा से नहीं ऊपरी थी.एकांत में वह विचार करता कि अमृता इतने वर्षों तक मां नहीं बन सकी पर अचानक वह मां बनने कैसे चली.इसका उत्तर भी उसके पास था पर जगजाहिर करना उचित नहीं समझता था.हां इतना अवश्य है कि वह भीतर ही भीतर जल रहा था.
जब अमृता ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया तो सारा गांव खुशी से झूम उठा.अभिनव ने भी तामझाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.गांव वालों ने जैसी खुशी मांगी,उसने दी.मगर वह भीतर से पीड़ित था.जिस प्रवीण पर वह पूरा विश्वास करता था हर काम में साथ लेता था अब उसे देख देखकर वह जल उठता था.
एक दिन अभिनव ने प्रवीण से कहा-मेरे पास एक ट्रेक्टर सागौन की लकड़ियां है.उसे शहर छोड़ आओ.''
प्रवीण अक्सर ऐसा काम किया करता था.वह ट्रेक्टर में लकड़ियां डलवा शहर की ओर चल पड़ा.ट्रेक्टर जैसे ही शहर में प्रवेश किया उसे पकड़ लिया गया.ट्रेक्टर समेत प्रवीण को आरक्षी केन्द्र ले जाया गया.उससे वहां पूछताछ शुरू कर दी गई.दरअसल अभिनव ने ही पुलिस को सूचना दी थी कि किसी ने उसके ट्रेक्टर को चुरा लिया है और आज उस ट्रेक्टर से सागौन की लकड़ियां पार करने की जानकारी मिली है.अभिनव आरक्षी केन्द्र में ही उपस्िथत था.प्रवीण यह सब नहीं जानता था.जब उसने अभिनव को सामने देखा तो उसका हाथ सहायता के लिए जुड़ गये.अभिनव ने कहा- मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूंगा.तुम्हारा मुझ पर बहुत बड़ा उपकार है भला मैं उसे कैसे भूल सकता हूं.'' और अभिनव वापस गाँव आ गया तथा प्रवीण जेल के सलाखों के पीछे चला गया.
गाँव में खबर फैली कि प्रवीण के फंसने पर अभिनव ने उसे बचाने के लिए खूब प्रयास
किया.जमानत तक के लिए प्रयत्न किया पर न मामला सलटाया जा सका और न ही प्रवीण को जमानत मिल सकी.हालांकि ऐसा कुछ नहीं था .देखने तो कोई गया नहीं था.अभिनव ने जो गांव वालों को बताया उसी को लोगों ने सच माना, यही वजह थी कि अभिनव की प्रशंसा करने अब तक नहीं छोड़ पाये थे ग्रामीण.अभिनव ने एक दिन गांव के प्रिय तम से कहा-तुम कृषक हो.कृषि भी करते हो मगर कृषि के आधुनिक तरीके को अपनाते नहीं यही कारण है कि तुम पर्याप्त मात्रा में कृषि उत्पादन नहीं पा सकते.''
- तुम्हारी बात गलत नहीं मगर अथार्भाव के समक्ष मैं कर भी क्या सकता हूं.चाह कर भी मैं आधुनिक कृषि नहीं कर सकता.''
- तुम नाहक परेशान होते हो.हमारी सरकार ने तुम्हारे जैसे असहाय किसानों के लिए ऋण सुविधा चालू किया है.तुम कर्ज क्यों नहीं ले लेते.कर्ज लेकर बोर करवाओ.पम्प बिठाओ.''
- मगर ऋण लेने का नियम मैं नही जानता.बैंक के किसी अधिकारी से भी मेरी पहचान नहीं है.''
- बस इतनी सी बात.मैं हूं न ?''
अभिनव, प्रियतम को बैंक में लेकर गया.वहां ऋण के लिए आवेदन जमा करवाया.अधिकारी को रूपये देने पड़े.प्रियतम के पास पैसा नहीं था अभिनव ने उसका खर्च उठाया.पच्चीस हजार का ऋण स्वीकृत हुआ.उसमें से आठ हजार का पम्प आया.पांच हजार अधिकारियो को खिलाना पिलाना पड़ा शेष बचा उससे बोर करवाया मगर वहां पानी ही नहीं निकला.पम्प घर पर ही पड़ा रहा.बैंक के कर्ज का ब्याज बढ़ता ही गया.एक अवसर ऐसा आया कि ऋण अदा नहीं करने के कारण बैंक ने उसकी जमीन की नीलामी की सूचना निकाल दी.
प्रियतम दौड़ा-दौड़ा अभिनव के पास आया.अभिनव ने सूचना पढ़ी.कहा- बैंक ने कर्ज इसलिए दी कि तुम कृषि कार्य कर उत्पादन करो और समय पर ऋण अदा करो मगर न तो तुमने सही ढ़ंग से कृषि कार्य किया और न ही एक भी बैंक का किस्त पटाया तो जमीन की नीलामी होगी ही.''
- मैं मानता हूं सारी गलती मेरी है.जमीन की नीलामी होने से मेरी बदनामी होगी.इसलिए चाहता हूं कि तुम बैंक का ऋण अदा कर दो और जमीन खुद रख लो.''
अभिनव यही चाहता था.उसने पानी के मोल जमीन खरीद ली.प्रियतम, अभिनव के घर काम पर जाने लगा.वह जिस जमीन का मालिक था उसका नौकर बन गया.पर वह खुश था.कहता फिरता था कि यदि समय पर अभिनव उसकी सहायता नहीं करता तो उसकी इज्जत दांव पर थी.अभिनव के कारण ही उसकी इज्जत बची है.। इतना सब कुछ होने के बावजूद अभिनव का सम्मान बढ़ता ही गया.गाँव वाले उसे हितैषी मानने से नहीं चुकते थे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें