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शनिवार, 30 मार्च 2013

बिही चानी

सुरेश सर्वेद

      बिही रूख खाल्हे बइठे जामबाई ल कुछू समझ नइ आवत हे। घेरी - बेरी एकेच ठन प्रस्न उठय अउ सांय ले नंदा जाये। का जामबाई अपन ऊपर लगे कलंक ल बइठका म धो पाही। काकर - काकर मुंह ल बंद कराही, अउ कराही त कइसे ? जामबाई के पेट म लइका का पले लगीस, गाँव भर के लोगन म संका - कुसंका पले लगीस। जामबाई के मुड़ म बिगड़े अउरत के ठिकरा गाँव वाले मन फोरिन के नई फोरिन येला जामबाई नइ जानय पर ओकर आदमी फोर दे रिहीस।
      जामबाई कुछूच नई बिसरे हे। ओ दिन उदुप ले आ के बुधारू ओकर आगू म ठाड़ हो गे। खांध म ओरमे झोरा अउ झोरा म दू - चार ठन किताब। धोती - कुर्ता तो पहिरे रिहीस पर मुड़ म पागा नइ रिहीस। मुड़ के चूंदी फूर - फूर ले। चस्मा के भीतरी ले आँखी जामबाई ल झांकिस। जामबाई के आँखी ओकर संग गोठियाना चाहीस। पूछना चाहीस - तुम कोन आव। कहाँ ले आय हव। मोर से का काम हे .... ? पर मुंहू ले बक्का नइ फूटिस। झोरा ल खांध म बरोबर करत बुधारू किहीस - मँय नवा मास्टर आय हंव। सुने हंव तुम्हर घर किराया के खोली हवै।
- हवै तो, पर किराया भाड़ा के बात ल नोनी के कका बताही। जामबाई के इशारा अपन गोसइया डहर रिहीस। खोली खाली रहै के बात सुन के बुधारू के सांस म सांस अइस। आज गाँव - गंवई के घलोक वइसन दिन नइ रहीगे हे जइसन पहली रिहीस। पहली गाँव म कोनो अवइया ल अलखेली म मकान मिल जावै। न किराया - भाड़ा के बातचीत होवै न एक दू खोली के बात रहै। जेकर नइ तेकर बियारा म पूरा के पूरा मकान खाली रहै। घर के देख भाल होही सोच के उही ल दे दे। अब समे बदलगे हे। गाँव के अवइया ल दसो डेढ़ौठी नापे ल परथे। तब कहूं गुजर बसर करे बर एक - दू खोली मिलथे। उहू म मकान गोसइया के दस ठन सरत। समे म आबे - जाबे। दारू - मांस नइ चलय। दीन म बिजली झन जराबे। बिजली बिल के आधा दे ल परही। खोली किराया मांगे ल झन परय। मरे का न करे। मकान गोसइया के सरत मानेच ल परही नइ ते खोली नइ मिलय।
      बुधारू के आज तीसरा दिन रहीस। खोली खोजत - खोजत हलाकान हो गे रिहीस। ओहर पहुंच गे रिहीस जामबाई के तीर। वोला पता चलीस - खोली तो खाली हवै पर किराया म देना हे के नइ सिरिफ अउ सिरिफ जामबाई के गोसइया पर निर्भर रिहीस। इहां तक ले खोली देखाय के अधिकार घलोक जामबाई के गोसइया पोटारे रिहीस।
      मंगल लट्ठा के गाँव म बाजार गे रिहीस। साग भाजी ले बर। ओकर आये बगैर कुछ होना - जाना नइ रिहीस। जामबाई अपन घर कोती खुसरगे। अभी आय म मंगल ल देरी रिहीस। तब तक कहाँ बइठौं, का करौं सोचत बुधारू मास्टर ठाड़े रिहीस। जामबाई एक अकेल्ला माई लोगन घर म रिहीस। उहां बइठके मंगलू के रद्दा जोहई ठीक बात नइ रिहीस।
      अभी बुधारू सोच - बिचार म उलझे रिहीस। उही बेरा गाँव के कोटवार माखुर मलत अइस। बुधारू ल देख के किहीस - जय जोहार गुरूजी ....।
- जय जोहार भई, जय जोहार ....।
- खोली मिलीस ...। फेर भीतरी डहर आवाज दे लगीस - मंगल, ऐ मंगल ....।
      भीतरी ले आवाज अइस - घर म नइ हे, बाजार गेहे ....।
     माखुर ल फकिया के। हाथ ल झररा के कोतवाल बड़बड़ाइस - अच्छा - अच्छा ... फेर मास्टर से कहीस - इहां ठाड़े रहै से कोनो फाइदा नइ गुरूजी। मंगल बजार जावै नइ अउ जाथै त बजार के हो जाथे। लहुटे के कोनो समे - ठिकाना नइ।
      कोतवाल के बोल बचन ल सुन के बुधारू के मन म संका - कुसंका उभरे लगीस। सोचे लगीस -समे - बेसमय ओकर होथय जउन खाथे - पीथे। कहूं मंगल घला तो इही रद्दा के आदमी नोहे। बुधारू अउ बिचार म उलानबाटी खातिस के कोतवाल किहीस - गुरूजी, तुम जइसन सोचत हव, वइसन कोनो बात नोहे। मंगल खवइया - पीयइया नोहे। ओकर एके ठन आदत हे - जहां दू संगवारी मिलीस, तहां बिलमगे त बिलमगे।
      बुधारू ल थोकिन राहत मिलीस। बुधारू खुद खवई - पीयई ले दूरिहा रिहीस। ओ चाहत रिहीस - ओला खोली अइसन जघा मिलय जिंहा ये दुरगुन झन रहै ...। वोहर कोतवाल संग चल परिस।
      गाँव बीच म गुड़ी चंउरा। ओ मेर सकलाय रहय गाँव के सियनहा मन। उंकरे तीर म जा के बइठगे कोतवाल। संग म बुधारू घलोक। उहां बुधारू ल बड़ मान - सम्मान मिलीस। सियनहा खेदू कहिथे - हमर जमाना के गुरूजी मन सरीख तोर पहिरावा हे बाबू। आजकल के नवा - नवा टुरा टंकी मन ले तंय अलगे हस। आजकल के मन मास्टरी का पा जाथे, अपन ल तसीलदार, कलेक्टर ले नीचे समझबेच नइ करय।
      बुधारू किहीस - का हे बबा, मास्टर जतका सादा - सरबदा रहही ओकर सोच - बिचार ओतके परखर होही। नानपन ले घर परिवार ले संस्कार मिलै हे। मोर ददा अउ बबा घला मास्टरी कर डरै हे।
- तभे बाबू, पच्चीस - तीस बरस के उमर म घला धोती - कुर्ता पहिरे हो। बीच म बात ल काटत सुखऊ किहीस - तंय कोतवाल संग कहां घुमत हस बाबू ?
- मँय किराया के खोली खोजत हंव। मंगल घर तीर कोतवाल मिलगे।
- त का खोली मिलीस ... ?
- अभी मिलै तो नइ हे, पता चले हवै।
- काकर घर खोली हे।
- मंगल के घर खोली हे। बिया बजार गेहे। घर म ओकर माइलोगन हवै। कहिथे - मंगल आही त बताही। कोतवाल किहीस।
- जमाना कहां ले कहां पहुंचगे। डउकी परानी ल घर के कोनो चीज म निरनय ले के अधिकार नइ। घर - परिवार म कुछूच काम - कारज होवै चलही त मरदजात के।
- गलती येमा माईलोगन के हे बबा। ओमन अपन अधिकार ल खुदे मरदजात ल सउंपत रहिथे।
- सिरतोन कहत हस बाबू, आज सरकार घला दाई - माई मन ल मरद के बरोबर मान के चलत हे। आये दिन माइलोगन मन ल बढ़ाये खातिर नियम - कानून बनावत हवै। कोनजनी माईलोगन काबर पाछू के पाछू रहै के धुन ल नइ छोड़ै ?
      सुखऊ के बात ल सुन के पुसऊ हंस परिस। पुसऊ के दांत निपोरी ल देख के सुखऊ किहीस - तंय कार गीज ले दांत निपोरी करत हस। मंय का गलत कहत हंव।
- तंय गलत नइ कहत हस। तोरो कथनी अउ करनी म अंतर हे। गोठियाथस तो माईलोगन के अधिकार के बात पर घर के कुची ल कनिहा के करधन म लटकाय रहिथस। भउजी चाहा बनना चाही त चाय - सक्कर ल घला तारा म ठूंस के रखथस। तोर असन आदमी ल तो माईलोगन के अधिकार जइसन भासन देवइ नइ फबे।
      सुखऊ ऐती - तेती देखे लगीस। कही बोल के दूनों अब बोचकगे रहिस पर उंकर बिचार बुधारु के दीमाग मे घुसरगे। नानकुन सभा। चार आदमी के चउपाल। अतेक बड़े - बड़े बिचार। बुधारु सोचे घला नइ रिहीस - ओहर अइसन गाँव म मास्टरी करे बर आही, जहां एकतरफा राज चलइया अउ वोकर बिरोध करइया घला होही।
      अभी बातचीत चलत रिहीस। मंगल सायकल म आवत दिखगे।  कोतवाल हुंत करइस। मंगल उंकर तीर अइस। सायकल म बइठे - बइठे पूछिस - का बात हे कोतवाल ?
कोतवाल बुधारु डहर ल देखात बताइस - ये नवा गुरुजी आय हे। तोर घर खोली देखे बर गे रहेन।
- त देख लेव ....।
- कइसे देखतेन, तंय तो घर म नइ रहेस जी ....।
- जामबाई तो रिहीस होही।
- जामबाई तोर बिना कभू एक पांव उसालथे। कोलबारी जाही त तोर संग। रगड़ के तरिया म नहाही त तोर संग। खेती - खार तोर संग। जेवन तोर बिना गर ले नइ उतारे।
पुसऊ के बात ल सुन के मंगल झेपगे। कहिथे - तोर तो बबा ... ?
सुखऊ किहीस - अभी मोर पुरखा म पानी रिकोइस अउ अब तोर पोलपट्टी खोलत हवै।
- येमा पोलपट्टी के का हे। सिरतोन ल कहिना कोई भंड़वा उघरइ नोहे ....।
बुधारु पुसऊ के बात ल फांकत किहीस - चलव गुरुजी, ये डोकरा मन के बात ल जतका कान म धरहू उलझाते जाही ...।
- हव रे गबरु जवान, जीवन भर तंय बुढ़वा नइ होवस। गबरु के गबरु रहीबे।
      बुधारु उठगे, संग म कोतवाल घलो। मंगल सायकल सीट ले उतरगे। तीनों मंगल के घर कोती चल परिन।
मंगल घर म पहुंचते सायकल के हेंडिल ले साग - भाजी के झोरा ल निकालिस। झोरा ल जामबाई ल देवत किहीस- चाहा बना डार।
      जामबाई चाहा बनाये लगीस। मंगल, बुधारु ल खोली देखाइस। बुधारु ल खोली जम गे। बीच अंगना म खटिया जठ गे रिहीस। उही अंगना म बीही रुख रिहीस। बीही रुख खाल्हे चउंरा बने रिहीस। कोतवाल चंउरा म बइठगे, गुरुजी अउ मंगल खटिया म। चाहा आइस। तीनों पीये लगीन। खोली के किराया तय होइस। बुधारु पइसा देना चाहीस। मंगल किहीस - जे दिन आहू, किराया उही दिन देहू ....।
दू दिन बाद बुधारु, मंगल के घर आ रहै लगीस।
      जामबाई अउ मंगल के बिहाव ल दस बरिस होगे रिहीस। एकोठन बाल - गोपाल नइ रिहीस। दूनों प्रानी म इही बात ल लेहे के आये दिन लड़ई - झगरा होवै। ओमन लइका - पिनका बर कतिहां - कतिहां नइ गीन। का डाक्टर कहिबे। बइगा - गुनिया कहिबे। मंदीर - देवालय कहीबे। अइसन कोनो जघा नइ बांच गे रिहीस जिंहा के बारे म कहे जाये - उहां जाये ले सब मनोरथ पूरा होथे। दसो डेढ़ौठी लांघे के बाद भी उंकर मनोरथ पूरा नइ होय रिहीस।
       सुरु - सुरु म बुधारु अपने म बिधुन राहय। बिहिनिया उठय। नहाये - खोरे, रांधे - खाय अउ स्कू ल चले जाये। स्कूल ले छूटे त किराया के खोली म आय। कपड़ा लत्ता बदले अउ गाँव कोती निकल जाये। चाय पान ठेला म बइठना भावत नइ रिहीस। इही कारन हे के ओकर संबंध गाँव के टुराटंकी मन संग न हो के बुढ़वा - सियनहा मन संग जादा होगे।
      अब गुड़ी चउरा म बइठना। बुढ़वा - सियनहा मन मेर दुनियादारी के बातचीत करना। गुरुजी अइसन - अइसन गियान के बात बतावै सुन के सियनहा मन चकरा जावै। धीरे - धीरे धरम अउ करम के बात घलो होय लगीस।
वो दिन जामबाई बीही रुख खाल्हे बने चंउरा म बइठे रिहीस। एक ठन सुआ रुख म फरे बीही ल चाने लगीस। चनाये बीही बद्द ले गिरगे। बुधारु स्कूल जाये बर खोली ले निकलत रिहीस। ओहर चनाये बीही ल उठा लीस। जामबाई कोती देवत किहीस - ये बीही चानी ल खा ले जामबाई, तोर कोख भर जाही ...।
जामबाई बिही ल धरत किहीस - बिही चानी खाये म थोरे कोख भर आही मास्टर .... ?
      उही बेरा मंगल पहुंचगे। किहीस - जामबाई सिरतोन कहत हे गुरुजी। जामबाई डहर देखत किहीस - फेर कोन जाने, लगइया ल धूर्रा - माटी के फूंक घला लग जाथे। हो न हो इही काम कर जाये। खा ले पगली, बिही चानी ल ...।
मंगल के आंखी म एक परकार के बिस्वास झलके रिहीस। वो दिन ओकर मन निरमल अउ उज्जर रिहीस। जामबाई बिही के चानी ल परसाद समझ के खा गे।
      बिही चानी के परताप रिहीस के भाग्य के खेल, येला न जामबाई समझ पाइस न मंगल। मंगल के कान म जइसे जामबाई के पांव गरु होय के खबर पहुंचीस। ओकर बांझा फूलगे। खुसी अतका लहर मारीस के ओहर आधा गाँव म मिठई बांट डरिस। जब मंगल मिठई बांटिस त खवइया मन घला अपन खुशी जतइन पर मिठई के मिठास के संगे संग उंकर अंतस म संका के आगी घलोक सिपचे लगीस। अउ इही आगी गूंगवा - गूंगवा के एक दिन भभकगे, जामबाई के हंसत - खेलत परिवार ल जराये बर।
गाँव म अइसन - वइसन चरचा चलइया मन के कमी नइ रहै। लाइ - लुगरी के बात एक कान ले दूसर कान, एक           मुंहू ले दूसर मुंहू लंघियात पहुंच जाथे। गुरुजी के साथ जामबाई के नाव धरइया अइसन लोगन मन घला रहै जउन चाहत राहय के मंगल के अंगना म एक किलकारी मारने वाला आ जाये। जइसे इंकर कान म जामबाई के पांव गरु होय के सोर पहुंचीस, इही मन बात के बतड़ंग बनाये म कनिहा कस लीन। सिरिफ एकेच कानाफूंसी - जामबाई अब तक कइसे महतारी नइ बनीस। मास्टर ल ओकर घर राहत साल भर लइ होय हे। अइसे का चमत्कार होगे जउन जामबाई के पेट म लइका पले लगीस ?
       गाँव वाले मन के अंतस म संका के आगी सिपचगे रिहीस। ये संका के आगी कते - कते मेर गुंगुवात रिहीस न मास्टर ल दिखत रिहीस न मंगल अउ जामबाई ल। संका के आगी गुंगुवा के जइसे भभकीस, मंगल के कान म का परिस। मंगल सुन के तिलमिला गे। ओहर जामबाई से बिकट पियार करय। बिस्वास जामबाई पर अतका जतका खुद पर नई रिहीस। पर गाँव वाले मन के लाइ लिगरी ओकर दीमाक ल हर लीस। ओकरो भीतर संका के आगी लगगे।
       जहां आदमी के अंतस म संका - कुसंका घर करथे। ओकर मन म अदावटी आ जाथे। जामबाई अंताजत रिहीस। मंगल के आदत - व्यवहार बदले रिहीस। बात - बात म जामबाई पर गुस्साय। चिल्लाय। बोमियावै ...। जामबाई कुछू नइ समझ पात रिहीस। वो रात के बात आय। मंगल जामबाई बर गुस्सागे। पहली धीरे - धीरे, फेर चिल्ला - बोमिया के गारी दे लगीस। बात कुछूच नइ रिहीस - जामबाई साग म नून डारे ल भूलागे रिहीस। साग मुंहू म गीस त मंगल कहिथे - साग म नून नइ डारे हस ... ?
- साग चढ़ाये रहेंव, उही बेरा बरदी आ गे। गाय - गरु ल बांधे म बिपतिया गेंव अउ नून डारे ल भूला गेंव। कहत जामबाई कटोरी म नून ला के रख दीस। मंगल के अंतस म पाप समागे रिहीस। कटोरी उठाइस। अंगना कोती फेंकत किहीस - गाय - गरु बांधे म तोर चेत नइ हराय, तोर चेत कोनो अउ कोती हराय रहिथे।
एक छिन जामबाई ल घला समझ नइ अइस के कते दूसर कोती ओकर चेत हराय रहिथे। मंगल के लगातार उठेवना जामबाई ल समझा दीस के मंगल के पेट म संका के आगी जलगे हे। मंगल कहीथे - मंय जानत हंव तोर पेट म काकर पाप नांदत हवै। दस बरिस तक तोर पांव गरु नइ होइस। बिही चानी म अइसन का जादू रिहीस के तोर पांव गरु होगे।
      मंगल के बात सुन के जामबाई सन्न होगे। मास्टर घला अपन खोली म रिहीस। सुन के उहू सन्न। न कभू जामबाई सोचे रिहीस के मंगल अइसनों कही सकत हे न बुधारु। बुधारु से सही नइ गीस। ओहर अपन खोली ले निकल के मंगल तीर अइस। किहीस - मंगल तंय का कहत हस, तोला कुछू समझ हे ?
- मोला सब समझ हे मास्टर। पता नइ कब - कब तंय जामबाई ल बिही चानी खवायस।
- तोर अंतस म पाप समागे हे मंगल ....।
- मोर मन म पाप समातिस त समोख लेतेंव, इहां तो गाँव भर म इही चरचा हे। दस साल ले जामबाई के कोख कइसे नइ अइस। मास्टर के आये ले कइसे कोख आ गे।
       बुधारु के संगे - संग जामबाई घला तरुवा ठोंक लीस। जामबाई के हिरदे के चानी - चानी हो गे। बोमफार रोय लगीस। अड़ोसी - परोसी मन सुनीन त दउड़त चले अइन। दबे - दबे चलत बात खुलगे। अवइया म उहू लोगन मन घला रिहीन जउन मंगल ले पहिली जामबाई के चरितर म कानाफूंसी कर डरे रिहीन। धीरे - धीरे मंगल के घर आधा गाँव सकला गे। मास्टर सुकुड़दुम। ओला कुछूच उमझत नइ राहय। आधा गाँव के लोगन के बीच बदनामी के बोझा मुड़ म बोहे बुधारु खड़े रिहीस। किहीस - मंगल के बुध हरा गे हे। मंय कभू ढंग ले जामबाई ल देखे घलोक नइ हों फेर ओकर संग अइसन - वइसन मोला समझ नइ आवत हे ?
        ऐती - तेती मुंहू मरइया। आगी लगइया मन ही मंगल ल दोस देय लगीन। रोवत जामबाई ल चुप कराये लगीन। मंगल निकल गे, गाँवम बइठका जुरोये बर। अब घर के बात गाँव अउ बइठका तक पहुंचगे। दूसरा दिन देखते - देखत गाँव भर के लोगन गुड़ी चंउरा म जुरियागे। ये उही गुड़ी चउरा रिहीस जिंहा रोज मास्टर के उठना - बइठना होवय। सियनहा मन संग गियान - बिज्ञान के बातचीत करय। करम अउ धरम के किस्सा सुनावय। आज उहां ओकर बदनामी के बइठका सकलागे ....।
       गुड़ी चउरा म मास्टर अउ जामबाई ल बलाये गीस। उहां मंगल अपन बात ल रखीस। किहीस - जामबाई के पेट म जउन लइका नांदत हवै। मोर नोहे। जामबाई के चरितर ठीक नइ हे। मंय येला नइ राखव।
- मोला जउन किरिया - कसम खवा लौ, मोर से वइसन कुछू च पाप नइ होय हवै जइसन मोर ऊपर थोपे जाथे। जामबाई किहीस।
- मंगल, का तंय कभू अइसन देखे हस जेकर ले लगे - जामबाई के चाल - चलन ठीक नइ हे। पंच बिसेसर पूछीस। मंगल चुप रिहीस।
- अइसन का बात होगे तेमा दस साल बाद जामबाई के चाल - चलन म अंगरी उठावत हस ? सरपंच पुरानिक पूछिस।
मंगल चुप।
- कइसे मंगल, तंय कुछू बोलत काबर नइ हस।
- का बोलव, जब ले जामबाई के पांव गरु होय हे। गाँव भर म एके च कानाफूंसी - दस साल ले जामबाई अमल म नइ होइस। मास्टर, मंगल के खोली म का रहै लगीस, जामबाई अमल म हो गे। मंगल किहीस।
- कोन कहिथे ...। सरपंच पूछीस।
फुटकार के मंगल मेर तो कोनो कहै नई रहै। मंगल काकर नाव ल धरतीस। सरपंच फेर तिखारिस - कोन कहीथे जी, बता न .... ?
- मंय उचंती सुने रहेंव ...। मंगल किहीस।
-उचंती सुनेस अउ अपन सुखी परिवार म आगी लगा डारेस। वाह रे मंगल। कउंवा कान लेगे अउ तंय ओकर पाछू दउड़ परेस। अरे, अपन कान ल टमर तो लेतेस, वो अपन ठीहा म हवै के नइ। सरपंच किहीस।
- मंगल जामबाई पर संका करके ठीक नइ करे हे। अरे, जामबाई अइसन माईलोगन हे जउन ककरो कोती आंखी उठा के नइ देखै। अइसन एको दिन बता मंगल जब तोर बिना जामबाई अपन पांव उसाले होही। पूसऊ पूछीस।
मंगल ताते रोस म ये सब कर डरै रिहीस। संका के आगी ओकर भीतर गुंगवइस अउ भभक गे रिहीस अउ भभक के बुझा गे रिहीस। वोला अपन अपराध के बोध होय लगीस। पर इहां तो जामबाई के चरितर म चीखला फेंकाय रहै। कभू चार समाज के बीच म नई बोलइया जामबाई कहे लगीस - मोर मुड़ म बद्दी परे हे। बरपेली मोला बदनाम करे गे हे। एकर सजा इही हे - मंय इंकर संग नइ राहंव ...।
      मंगल सन्न, मास्टर घलोक सन्न। मास्टर सोचे लगीस - जामबाई ताते रोस म मंगल ल छोड़ मोर संग रहै के किरिया झन खा जावै। जामबाई अपन पेट म हाथ रख के किहीस - मंय मोर पेट के लइका के किरिया खावत हवँ। जउन लइका मोर पेट म नांदत हे, इंकरे आवै। मंय अब इंकर संग नइ रहीके अपन मइके म रहहू। कहत जामबाई बोमफार के रोय लगीस। मंगल जामबाई के तीर अइस। ओकर संकारुपी आगी जल के राख हो गे रिहीस। जामबाई ल पोटार लीस। किहीस - लइका - पिनका के किरिया कार खाथस ? मइके कहां जाबे ? चल पगली अपन घर ....।
       पंचायत के निरनय बिना सुनाये होगे रिहीस। मंगल, जामबाई ल चुप करात अपन घर कोती लेगे। संगे - संग मास्टर घला अपन खोली कोती चल परिस ....।

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